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Thursday 19 September 2013

किताबें बोलती हैं - 7

सितारे टूटते है - इरफ़ाना अज़ीज़ 

इरफाना अज़ीज़ की ग़ज़लें और नज्में 

( संपादक - सुरेश कुमार )


          पाकिस्तान अपने शायरों और उनकी शायरी पर ठीक ही गर्व करता है ! उर्दू उनकी मादरी जुबान है और शायद इसीलिये पाकिस्तान की शायरी और गज़लें अपनी अलग पहचान और खुशबू लिए है !यह कहना भी गलत नहीं होगा कि पाकिस्तान की शायरी जितनी वहाँ मकबूल है उतनी भारतवर्ष में भी लोकप्रिय है ! आज फैज़, फ़राज़, नदीम कासमी, कतील शिफाई, परवीन की गज़लें अपनी उत्कृष्टता के कारण भारत के ग़ज़ल प्रेमियों की जुबान पर है ! हमारे प्रसिध्ध गायकों ने भी उन्हें गाया है और फिल्मों में इनका उपयोग किया गया है !
          इस लिस्ट में एक और शायरा का नाम है - इरफ़ाना अज़ीज़ ! आज हम भी इसी शायरा की किताब सितारे टूटते है का जिक्र करेंगे !

अजीब बात है कि अक्सर तलाश करता था
वो    बेवफाई   के   पहलू    मिरी   वफ़ा  में
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उस एक लम्हे से मैं आज भी हूँ ख़ौफ़ज़दा
कि मेरे घर को  कहीं मेरी बददुआ न लगे
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शाखों  पे  ज़ख्म,   फूल  सदाओं पे आये है
वो रंग शहर-ए-गुल की फ़जाओं पे आये है
शहर-ए-गुल - फूलों का नगर )

वो  सुर्खरू   है  सरमद-ओ-मंसूर  की  तरह 

इल्ज़ाम     सारे     मेरी  वफ़ाओं पे आये हैं 

शायद निशस्त-ए-दर्द से वाक़िफ़ थे नेशतर

क्या रंग अब के दिल की क़बाओं पे आये हैं
निशस्त-ए-दर्द  - पीडा की गोष्ठी )

फिर जैसे हों दिलों  के  तआकुब में फासलें 

फिर   दिन   बुरे  हमारी  दुआओं पे आये है 
तआकुब  - पिछा करना )

खुश्बू की तरह गोशो-ए-ज़िन्दां में ऐ  सबा 

पैगाम    किसके   नाम  हवाओं पे आये हैं 
गोशो-ए-ज़िन्दां - कारागार का एकांत )
* * *
           इरफ़ाना अज़ीज़ का समकालीन उर्दू शायरी में उल्लेखनीय योगदान है ! इरफ़ाना अज़ीज़ की शायरी का कैनवास काफ़ी विस्तृत है !उनकी ग़ज़लों और नज्मों का विषय सिर्फ उनके अपने देश पाकिस्तान की समस्या तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इरफ़ाना अज़ीज़ की शायरी तमाम समस्याओ से ऊपर उठ कर सारी मानव जाती के कल्याण का ख़्वाब देखती हैं !
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ईंन्सां के साथ  रिश्ता-ए-ईंन्सां अगर रहे
दुश्वार  ज़िन्दगी  का  कोई मरहला नहीं
* * *
शिकस्त-ए-मौज* नज़र आयी नाखुदा की तरह
समन्दरों   से   बहुत   दूर   जब   किनारे  गए
( * आनंद की रुतु की त्रुष्णा )
* * *
किसे है फ़िक्र-ए-सुखन*, जुस्तजू-ए-हर्फ़** किसे
ज़माना  गुज़रा  हमें  अपने  नुक्ताची*** से मिले
(* काव्य की चिंता,**शब्दों की खोज, ***आलोचक )
* * *
          किसी भी भाषा के साहीत्य में महोब्बत गीत-गज़ल-काव्यो का प्रमुख विषय रहा है ! इरफ़ाना अज़ीज़ तो कभी मुहोब्बत में ज़ख्म खा कर अपना दर्द छुपाना चाहती है साथ-साथ मुहोब्बत में एसे ज़ख्म खाना चाहती है जिससे दिल उनकी तमन्ना, आरजू न करे ! और साथ ही महोब्बत में कुछ हिदायत भी देती है ! और अपनी आशा - अभिलाषा पूरी न होने की वजहा भी बताती है की ज़िन्दगी के गम उसे कितने रास आ गये है ! अपने प्रिय को देखने के बाद उसकी अनुपस्थिती में जो मन:स्थिती होती है इरफ़ाना अज़ीज़ उसका बेहतरीन चित्रण किया है !

जब  तुझे  याद  किया  रंग  बदन का निखरा
जब तिरा नाम लिया कोई महक-सी बिखरी
* * *
शिकस्त-ए-जिस्म-ओ-नज़र* का उसे पता न लगे
कि   ज़ख्म-ज़ख्म   बदन   हो  मगर  हवा न लगे 
( शरीर और द्रष्टि की हार )
वहाँ  तो  जो  भी  गया   लौट   कर  नहीं   आया
मुसाफ़िरों    को   तेरे  शहर   की  हवा  न  लगे 
* * *
समेट लूंगी मैं सब फासले सराबों के
समन्दरों के इवज़ तश्नगी मुझे दे दे
* * * 
लगाओ दिल पे कोइ ऐसा ज़ख्म-ए-कारी* भी
दिल  भूल  जाये   ये   आरजू   तुम्हारी   भी
( * भरपूर घाव )
मोहब्बतों  से  शनासा  खुदा  तुम्हें  न करे
कि तुमने देखी नहीं दिल  की बेक़रारी भी
* * *
मर्ग-ए-आरजू पर अब दिल लहू नहीं रोता
रास आ गये दिल को ज़िन्दगी के ग़म जैसे
* * *
          फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ ने कभी उनके बारे में खा था - " इरफ़ाना अज़ीज़ हर ऐतबार से हमारे जदीद शुअरा की सफ़-ए-अव्वल में जगह पाने की मुस्तहक है ! "और आज इरफ़ाना अज़ीज़ अपनी एक अलग पहेचान बना कर उन शायरों की पंक्ती में खड़ी है जिसका नाम बड़ी इज्ज़त से लिया जाता है !
          इस किताब में 44 गज़लें और 43 नज़्में है! यानी ग़ज़लों-नज़्मों का खजाना ! इस किताब को पाने के लिए आप नीचे दिए गये लिंक पर क्लिक करे, किताब से जुड़ी सारी जानकारी आपको मिल जाएगी !
* * * 
          जाते-जाते कुछ और गज़लें और एक छोटी नज़्म उम्मीद है आपको पसंद आयें --

इक  कयामत-सी बपा करती है
ज़िन्दगी  किससे वफ़ा करती है

टूट   जाते   हैं  दिलों   के  रिश्ते
ज़ुल्म वो रस्म-ए-वफ़ा करती है

रु-ब-रु  आज  बता  दे  ऐ दोस्त
बात  जो  तुझको खफ़ा करती है
* * *
छाँव थी जिसकी रहगुज़र की तरफ
उठ  गये  पाँव  उस शजर की तरफ 

चल   रही   हूँ  समन्दरों   पर    मैं
यूं  कदम  उठ गये हैं घर की तरफ 

कोई बतलाए, दश्त-ए-हिजराँ से
राह जाती है किस नगर की तरफ
* * *
जलवागाहो  में  लौट आयेगा
वो  निगाहों  में  लौट आयेगा

जो है मेहनतकशों का दीवाना
कारगाहों     में   लौट आयेगा

जो  गया  तिरी  ख़ुशी  के लिए
ग़म  की राहों में  लौट आयेगा

जिस की सांसे बुझा रही है हवा
तेरी   आहों  में  लौट आयेगा
* * *
खुशबू  (नज़्म )
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आबशारो* की थकन से पहले 
चाँदनी रात में गूँजी थी सदा-ए-जानां
और चैरी के शिगूफ़ों * के t तले **
बर्ग-ए-ताजा  से जो उतरी थी सर-ए-राहगुजर
सुर्खी-ए-लब में अभी तक है वो खुशबू लरजाँ
(*झरनों ) (**कलियों )
* * *
कोइ गलती रही हो माफी चाहता हूँ-

19 comments:

  1. बहुत सुन्दर इरफाना जी से आशना कराने के लिए. पाकिस्तान के शायरों की शायरी की बात से सहमत हूँ. अभी पिछले शनिवार को की डॉ. पीरजादा कासिम से मुलकात हुई. एक यादगार मुलाकात.

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    1. thank you...............pirzada sahab se ek yadgar mulakat ke liye bdhai...

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  2. शुभप्रभात
    खूबसूरत पोस्ट
    हार्दिक शुभकामनायें

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  3. जब तुझे याद किया रंग बदन का निखरा
    जब तिरा नाम लिया कोई महक-सी बिखरी ..

    बहुत खूब ... सच में इरफ़ान साहब क सोच का विस्तृत केनवस है जो उनकी गज़लों में नजार आ रहा है ... आभार इस नायाब शायर से मिलवाने का ...

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  4. वाह , शुक्रिया अशोक भाई, बहुत सुंदर परिचय कराया आपने

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  5. बेहतरीन अभिवयक्ति.....

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  6. बहुत खूबसूरत पोस्ट , मैं हमेशा कहता हूँ आप जो काम कर रहे हैं, उसे जितना सराहा जाए कम है . काश ! कभी मैं भी इतना अच्छा लिखूं कि आपके पोस्ट का विषय बन सकूँ..

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  7. बहुत सुंदर..एक उत्तम पुस्तक का परिचय प्राप्त हुआ। धन्यवाद...

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  8. बहुत अच्छे नज्मकार से परिचय कराया .. धन्यवाद..

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  9. नर्क-चतुर्दशी का परिवार आप को मेरे मित्र सपरिवार शुभ हो !
    'जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना, धरा अपर अँधेरा कहीं रह न जाये !'
    हाँ बात सटीक है |प्रत्येक दे३श वासे का अपना साहित्य उस की मात्री-भाषा/राष्ट्र-भाषा में ही हों चाहिये !

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