Ashok khaachar
ग़ज़ल मेरी इबादत …
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Sunday, 3 March 2013
फ़रहत शहज़ाद की गज़लें
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खुली जो आँख तो वो था न वो जमाना था दहकती आग थी, तन्हाई, थी फ़साना था ये क्या के चंद ही कदमो पे थक के बैठ गये तु...
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