ज़ज्बात : मनु
दूर जाने से किसने रोका है
बस ख़यालों से परे रहने की
इज़ाज़त नही तुझे
तेरी तलाश जब भी ख़त्म करनी चाही मैंने
सारी दुनिया घूम कर
बस ख़ुद को आईने में देख लिया
तेरा वज़ूद इस कदर हावी है मुझपर
* * *
''तसव्वुर ' बन के उसने
'उसकी ' सारी ज़िन्दगी एक खूबसूरत ''ख़्वाब'' बना दी थी
* * *
यहाँ उस बेहतरीन किताब के अंश है जिसकी कवयत्री है ' मनु ' ! किताब का नाम है ज़ज्बात ! मनु जी से यूँ तो मेरी मुलाक़ात नही हुई पर मुलाक़ात हुई है यानि फेसबुक पर ! बातो बातो में पता चला किताब के बारे में, मेने पुछा कहा मिलेगी ? पता मिला, मंगवाई, और पढकर हैरान हो गया !! दर्द को क्या बयाँ किया है !!बहुत खूब !!
पहले जान लेते है कवयत्री के बारे में ! मनु जी का जन्म देहरादून मे हुआ ! अंग्रेजी साहित्य में स्नात्कोत्तर की और तालीम भी इसी शहर से हासिल की ! ग़ज़लों-नज्मों-गीतों से बेहद लगाव रहा है ! इनके पसंदीदा शायर है गुलज़ार और उपन्यासकार अमृता प्रीतम है ! अमृता के उपन्यास ' नागमणि ' ने लिखने की ख्वाहिश पैदा की ! लिखने में इनकी कलम की रौशनाई ग़ज़ल, नज़्म, उपन्यास पर लफ्ज़ जडती है ! इनका पूरा नाम पूनम चन्द्रा है ! 'मनु ' इनका तखल्लुस है ! 2006 से कनाडा, ओंटारियो के ब्राम्पटन शहर में रह रही है ! यहाँ के ' हिंदी रायटर्स गिल्ड, कनाडा ' की सदस्य है और अपने ही आईटी- व्यवसाय से जुड़ी है ! इनकी जुबा में ' ज़ज्बात ' हर लम्हा खुद से हुई बात का जिक्र है,जो कहीं-न-कहीं पढने वाले के दिल की राह से होकर गुज़रता है ! लेकिन ये सिर्फ मनु जी के नहीं !हर एक इंसान के ज़ज्बात हैं ! आप पढोंगे तो शायद मेरी बात का समर्थन करेंगे की ये ख़याल सिर्फ़ उनका ही नही हमारा भी हैं :-
वो ख़याल
जो तेरी रह्गुज़र से हो कर गुज़रे
बस वही
' ज़ज्बात ' है !
* * *
राहों का ज़िक्र न हो तो
अच्छा है
मिलाती भी यही हैं
और
जुदा भी यही करती हैं
एक शख्स की दो जुदा फ़ितरत
दिल को दुखाती हैं
कुछ अच्छा नहीं लगता !
* * *
मैंने इस तरह जिया है तुम्हें अपनी ज़िंदगी में
की कभी तुम्हारी कमी महसूस ही नही हुई
पर यकीन मानो
बहुत कमी महसूस हुई है !
बहुत कमी महसूस हुई है !
* * *
ज़िंदगी की किताब का वो पन्ना
किसी का हो गया तो हो गया
उसी पन्ने पर
आप एक नई कहानी नहीं लिख सकते
और वो पन्ना हमेशा मुड़ा रहता है !
* * *
' जज्बात ' ऐसे बेहतरीन खयालो से भरा पड़ा एक खज़ाना है ! लेकिन शर्त इतनी है इस ख्याल को पाने के लिए समंदर की गहराई में एक डूबकी लगानी होगी ! और आपको एसे मोती मिलेंगें कि आप मालामाल हो जायेंगे ! हर खयाल ऐसा हैं मानो ये हमारी ही कहानी हों !
वो हर एक से दुआ लेता हैं
सलाम करता हैं
सुना है वो आज कल अजनबियों से भी कलाम करता हैं
क्या मिल गया मुझे, उसे इतना जान के
ख़ुदाया
मैं उसके लिए अज़नबी क्यों नहीं !!
' ज़ज्बात ' की कई प्रस्तुतियों में हम अपनी सोच को अभिव्यक्त होते पाते हैं ! हमे हैरत में डालने वाली बात तब होती है जब हम ऐसे अल्फाज़ को महसूस करते है जिसे हम व्यक्त नही कर सके !संपादक मुकेश मिश्र ने किताब में लिखा है- 'ज़ज्बात' में मनु जी ने एक निराले क़िस्म की शैली और शिल्प को तो .चुना ही- साथ ही अपने समय, काल, व्यक्ति और समाज के साझेपन को भी अभिव्यक्त किया है ! 'ज़ज्बात' की प्रस्तुतियां इस तथ्य का अनुभव कराती हैं की एक लेखक के रूप में मनु जी की आँखे कितनी चौकस है, और समय व् जीवन के अंधेरे-उजाले में एक साथ कितनी दूर तक देख सकती हैं और क्या खोज सकती है, और उनका अनुभव कितना व्यापक हैं ! उनकी प्रस्तुतियों की एक और विशेषता हैं- शब्दों में अर्थ जुटाने की और फिर उन अर्थों को खोलने की ! 'ज़ज्बात ' में मनु जी ने अपनी रचनात्मकता में असाधारण को खोजा है, और अपनी रचनात्मक सामर्थ्य द्वारा उसे प्रमाणित भी किया है !
मनु जी के पसंदीदा शायर "गुलज़ार" है और यही कारण है की मनु जी के ख्यालो और ज़ज्बात में "गुलज़ार" का प्रभाव साफ-साफ दिखाय देता है ! वहीं गहराई और ऊंचाई - नई सोच, बुलंद हौंसला !
मुहब्बत में
वफ़ा का जिक्र क्यूँ लाते हो बार-बार
ये उसने की हो या मैंने, क्या फ़र्क़ पड़ता है
मतलब तो मुहब्बत से है, हाँ वो दोनों ने ही की थी
मुझे याद हो वो भूल जाये, क्या फर्क पड़ता है
* * *
पूरी तरह जीना कब का भुला दिया
कुछ तुम में जिंदा हूँ
कुछ खुँद में बाक़ी हूँ !
लिजिये आपके लिए पेश है मनु जी की किताब ज़ज़्बात के लोकार्पण कार्यक्रम के कुछ अंश DD National से और रू-ब-रू होते है मनु जी से और उनकी आवाज़ से :-
इस किताब को पाने के लिए आपको ज्यादा तकलीफ़ नही उठानी पड़ेगी ! इस पुस्तक को ओन लाइन वेबसाइटो से खरीदा जा सकता है आप दी गइ लिंक पर क्लिक करे किताब से जुडी सारी जानकारी मिल जाएगी :-
और फेसबुक वाले दोस्तों के लिए मनु जी से मिलने का लिंक :-
साथ ही साथ जज़्बात का फेसबुक पेज के लिंक :-
जाते-जाते मनु जी के अनमोल ख़याल के साथ आपको छोड़े जा रहा हूँ :-
तेरा ज़िक्र आया
और
आँखों में आँसू आ गए
तेरे एहसास में आज भी
कितनी जुम्बिश है !
* * *
सारी चांदनी रात सिमटकर वहीं आ गयी
जहाँ तुम हो मेरे साथ मेरा चाँद बनकर
कह दो इस जहाँ से आज बस चिरागों से ही काम चला ले !
* * *
ये जो दर्मियाँ एक फ़ासला रह गया था
कहीं कुछ भी नहीं था
इसीलिए बहुत ज्यादा रह गया था !
* * *
ख़्वाबों और ख्यालों पर
उसकी सोच के जाले हैं
अच्छा लगता है मुझे उसके नाम में .उलझकर
बार-बार मरते रहना !
* * *
मुहब्बत में लफ्ज़ों का जिक्र ही क्यों हों
मुहब्बत में क्या कभी,सब कुछ बयाँ हो पाया है
हमेशा कहीं कुछ-न-कुछ छूट गया है
और फिर
पूरी तरह बयाँ हो जाये, ये ऐसी शय भी तो नहीं !
* * *
बुराइयों के नहीं
यहाँ
अच्छाइयों के सबूत देने पड़ते हैं !
* * *
मुहब्बत में लफ्ज़ों का जिक्र ही क्यों हों
मुहब्बत में क्या कभी,सब कुछ बयाँ हो पाया है
हमेशा कहीं कुछ-न-कुछ छूट गया है
और फिर
पूरी तरह बयाँ हो जाये, ये ऐसी शय भी तो नहीं !
* * *
बुराइयों के नहीं
यहाँ
अच्छाइयों के सबूत देने पड़ते हैं !
* * *
( लिखने में गलती रही हो तो माफ़ी चाहता हूँ ! )
behatareen bhao ka khoobshurat sanyojan ,kabile tarif
ReplyDeletezazbat ko mahsus karne ka shukhriya madhu singhji
DeleteBehad Shukriya Madhu Ji
DeleteBehad Shukriya Madhu Ji .......
DeleteShukriya Madhu Ji.......
DeleteShukriya Manu ji
Deletezazbat ko mahsus karne ka shukhriya madhu singhji
ReplyDeleteजज़्बात अच्छे लगे। भावनाओं का सहज बहाव है इनमें।
ReplyDeletebhot bhot shukhriya aapka
DeleteBehad Shukriya Manika Ji
Deleteमैंने इस तरह जिया है तुम्हें अपनी ज़िंदगी में
ReplyDeleteकी कभी तुम्हारी कमी महसूस ही नही हुई
पर यकीन मानो
बहुत कमी महसूस हुई है ...
बहुत खूब ... गहरे जा के कीमती मोती जैसे ले आए हैं आप इस पुस्तक से ... मनु जी की ख्याल, ख्वाब और हकीकत में एक ही फर्श दिखाई देता है ... जिसे महसूस किया जा सकता है इन पंक्तियों में जो आपने लिखी हैं ...
लाजवाब समीक्षा ... पुस्तक की आत्मा को उतारा है आपने जैसे ...
aapne bde gor se post ko parkha aapka shukhriya sr
DeleteShukrguzaar Hun Digambar Ji....
Deletethank you
ReplyDeleteBehad Shukriya Ashok Ji
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर और सार्थक प्रयास, मै खुशनसीब हूँ जो उस बेहतरीन पल का हिस्सा बना, मैंने जज्बात को अचे से महसूस किया है...
ReplyDeleteशायद कुछ पंक्तिया जो उस वक़्त मेरे ज़ेहन में आयी थी और मैंने जज्बात के नाम की थी...
अभी तो घुटनियों चली हो तुम...
अभी पहाड़ सी चट्टानों पर चड़ना बाकी है...
thank you sr....thank you
Deletekash huje thode din pahle ye bat pta chalti......
Shukrguzaar hun Ashraf Baig Sahab............
DeleteBahut Khoobsurati se Blog mein present kiya hai
ReplyDeletethank you sr
DeleteBahut Khoobsurati se Blog mein present kiya hai
ReplyDeletehank you
Deleteflow of feelings
ReplyDeleteबढ़िया हलचल.....
Deleteमनु जी की अनभूतियों में अपनेपन का अहसास हरदम जिन्दा रहता है
ReplyDeleteसीधा,सरल कहन पर गहरी अभिव्यक्ति
उन्हे बधाई
अशोक भाई सार्थक समीक्षा के लिये
साधुवाद
Behad Shukriya
DeleteShukrguzaar hun Jyoti Ji........
Deletewaaaaah waaaaah behtrin khyalat or jazbat bhot khub
ReplyDeleteBehad Shukriya Mayurdvaj Sahab..........
Deletebehad sundar prastuti zazbat ko khoobshurat labjo me piroya hai
ReplyDeleteज़ज्बात की बहुत सुन्दर दमदार प्रस्तुति के लिए धन्यवाद ...
ReplyDeleteBehad Shukriya Kavita Ji....
Deletewah .... wah .............
ReplyDeleteBehad Shukriya Hitesh Ji....
Deletethank you
ReplyDeleteआपकी यह रचना कल रविवार (26 -05-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeletethank you
Deleteअशोक भाई आज आपके ब्लॉग पर आ कर बहुत अच्छा लगा. दुआ करता हूँ आपकी "किताबों बोलती हैं" श्रृंखला सालों साल चले. मैंने इस श्रृंखला की तीनो पोस्ट पढ़ी हैं और आपकी लेखनी से बहुत प्रभावित हुआ हूँ। शायरी और कविता पर आपकी पकड़ जबरदस्त है। तीनो रचनाकार जिनका जिक्र आपने इस श्रृंखला में किया है कमाल के हैं। मोनिका जी से मेरी मुलाकात सिहोरे में होते होते रह गयी , मैं उनके लेखन का कायल रहा हूँ, अपने पिता स्व. श्री रमेश हठीला के नक़्शे कदम पर चलते हुए उन्हें देखना बहुत अच्छा लगता है। रेखा जी को पहली बार पढ़ा और उनकी ग़ज़लों ने दिल मोह लिया . उनकी दृष्टि व्यापक है और कहन का अंदाज़ बहुत दिलकश . मोना जी की रचनाओं ने सच में गुलज़ार की याद दिला दी। अंतर मन की कोमल भावनाओं की अभिव्यक्ति जिस कुशलता से मोना जी ने की है वैसी बहुत कम पढने को मिलती है . आप मेरी बधाई इन सब तक पहुंचा दें .
ReplyDeleteनीरज
bhot bhot shukhriya sr.........aek bt bta du sr mera blog pr aane ki zah sirf or sirf aap hi...me jo kuch bhi likhta hu sirf aap se zude rahene ka jariya hai..men shayr ya kvi nhi hun is liye aapki hi nqal karta hu...sorry sr..lekin ye bat sach hai///mera blog pe sirf utna hi maqsad hai ki aap se zuda rhu
DeleteMai Tahe Dil se Shukrguzaar Hun Neeraj Ji.....BAS naam Manu Ji ...:).....
Deleteashok ji namaskaar
ReplyDeletejitna aapne likha use padhkar bahut hi behatar samiksha likhi hai aapne
badhai ji
Behad Shukriya Sarita Ji........
Deleteशायरी और कविता पर आपकी प्रस्तुति बेमिसाल होती है
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें ....
bhot bhot aabhai hu aapka...thank you
DeleteShukrguzaar Hun Vibha Ji........
Deletethank you
ReplyDeletebahut hi acchha laga.
ReplyDelete