यादों का सफ़र : रेखा अग्रवाल
मैं मिलूँ तो मेरा पता लिखना!
मुझे जनाब अनवारे इस्लाम साहब ने कूछ ग़ज़ल की किताबे भेजी थी ! जिसमे इक किताब थी शायरा रेखा अग्रवाल की किताब ' यादों का सफ़र ' ! आज इसी किताब का हम जिक्र करेंगे !
जमाना बदला तो महिलाए अपने हक़ की लड़ाई जीतने में भी कामयाब हुई और दूसरी तरफ़ ग़ज़ल भी अपने दकयानुसी अर्थ की ज़ंजीरो से आज़ाद हो गइ ! ग़ज़ल आज सिर्फ़ महबूब से बाते करने तक महदूद नही है, बल्कि टूटते-बिखरते रिश्तों का दर्द, ग़रीबी और इस्तहसाल की चुभन, तमाम सियासी-समाजी और साईंसी, इक्तिसादी और आदमी से जुड़े हर मसअले के बेबाकी से इज्हार का वसीला बन गई है ! परवीन शाकिर की ग़ज़ल की बोल्डनेस ने कितनी ही शाइरात को अपना वजूद मनवाने की हिम्मत बख्शी ! इन्हीं में एक है रेखा अग्रवाल !
रेखा जी के शेर पढ़कर ऐसा लगता है जैसे उन्होंने ज़िंदगी को बहुत क़रीब से देखा हो, परखा हो, समजा हो ! रेखा जी के कितने ही शेरो पर पूरी-पूरी क़िताब लिखी जा सकती है ! रिश्तों की 'नज़ाकत' और 'ऊँच-नीच' की रेखा जी को ख़ूब समज है, तभी तो वो कहेती ही:-
मैं रिश्तों की हकीक़त जानती हूँ,
हर एक रिश्ता मेरा परखा हुआ है !
* * *
बाहर-बाहर हँसने वाला,
अंदर-अंदर टूट चूका है !
* * *
घर के आईने के अंदर
घर के बाहर का चेहरा है !
* * *
खिड़की दरवाजों से पर्दे लिपट गये,
जब हमसाये से हमसाया रूठ गया !
मुझे उम्मीद है कि बाक़ी और सैंकड़ो शेरो की तरह उनके ये अशआर, दुनिया के किसी भी शायर को रेखा जी की शायरी कि ऊंचाईयों के बारे में सोचने पर मजबूर कर देंगे :-
दर्द है इतना आशना मुझसे !
मिलने आता है बारहा मुझसे !
एक सदी की मिली सज़ा मुजको,
एक पल की हुई ख़ता मुझसे !
मै अंधेरों के हक में बोली थी,
रौशनी है ख़फ़ा-ख़फ़ा मुझसे !
मैंने लम्हों की आस क्या छोड़ी,
वक़्त को है बहुत गिला मुझसे !
अनेकानेक विषयों पर कहे गये बहुरंगी अशआर के साथ कुछ ऐसे अलग से अपनी और ध्यान खींचते है जिनमें रंगे तस्वूफ़ है, एक पुकार है, उस दुनिया की जो हमारी रोजमर्रा की दुनिया से अलग है,शायद ए पुकार दूर है या शायद हमारे अंदर छूपी है ! हरीयाणा की यह बेटी जब शेर कहेती है तो शेर मै तगज्जुल, फ़िक्र की गहराई, गिराई (पकड़ ) तो होती ही है, शेर अपने क़ारी और सामयीन ( पाठक-श्रोता ) पर बिजली की रफ़्तार से उसकी रूह में उतर कर वही कैफ़ियत पैदा कर देता है जो शाइरा के ज़हनों-दिल मे नूर बनकर जल्वागर होता है ! उनके अशआर :-
हम समज पाए कहाँ इस जिंदगी का फल्सफ़ा,
आईना तकते रहे नादान बच्चों की तरह !
* * *
नज़रो में गहराई हो तो,
लगता है हर मंजर अच्छा !
* * *
सूरत से क्या लेना-देना
सीरत का हो जेवर अच्छा !
* * *
पसरा अगर अंधेरा देखें आप पड़ोसी के घर में,
ऐसी दिवाली पर यारो, दीप जलाना ठीक नहीं !
* * *
छोटी छोटी ज़रूरतें मेरी
खा रही है बड़े इरादों को !
* * *
जो मेरी आँख से बड़े निकले,
क्या कहा जाए ऐसे सपनों को!
* * *
* * *
सूरज लहूलुहान समंदर में गिर पड़ा
दिन का गुरुर टूट गया रात हो गई !
* * *
वो जो ओरों के काम आता हो,
ऐसे इन्सान को ख़ुदा लिखना !
* * *
अपने अंदर ही जाकना बेहतर !
क्यूं किसी को भला बुरा लिखना !!
* * *
अपनी हर इक मेंह्बानी का वो रखते हैं हिसाब,
अब हमारे मेह्बा कितने सयाने हो गए !
* * *
वो सौंपकर गया है मुजे आंसुओं के फूल,
ठंडा सा उसकी याद का जोंका मुझे भी दे !
रेखाजी ने अपने कुछ पसंदीदा अल्फ़ाज़ से कमाल के अशआर तख्लिक़ किये हैं ! मिसाल के तौर पर "आईना" उनके एहसासात की ग़म्माजी का जबर्दस्त आइनादार है ! देखिये:_
बुज़ुर्गो जाकना मत आईने में,
शरारत से लड़कपन बोलता है !
* * *
बदल ले लाख तू चहरे को अपने,
हक़ीकत बनके दर्पन बोलता है !
* * *
* * *
आईना देख रहे हो तो सँवारो ख़ुद को,
वर्ना अपनी ही छवि देखके डर जाओगे !
* * *
आइना सच बताएगा हर हाल में,
खुलके सच्चाई का सामना कीजिए !
* * *
आईना शाहिद तो था मेरा,मगर चुप ही रहा,
मेरी सूरत ख़ूद मेरी सूरत से धोखा खा गई !
मेरी सूरत ख़ूद मेरी सूरत से धोखा खा गई !
अब में रेखाजी के वो चन्द अशआर पेश करना चाहता हूँ जिनमे उनकी शायराना शख्सियत बड़ी वजाहत के साथ उभरकर सामने आती है और इस बात का स्पस्ट संकेत देती है कि शायरों और शायरात की भीड़ में उनकी शायराना अज़्मत दूर से पहचानी जाएगी:
मेरी तन्हाई रोना चाहती है,
तेरे कमरे का कोना चाहती है
* * *
इब्तिदा, इन्तहा नही होती,
इब्तिदा को न इन्तहा लिखना !
* * *
इसलिए तो एकमत होते नही दो आदमी,
आदमी हर दम बदलता है विचारों की तरह !
* * *
* * *
धूप अपनी कोशिशें नाक़ाम होती देखकर,
मेरे पैरो के तले ख़ूद छाँव बनकर आ गई !
मेरे पैरो के तले ख़ूद छाँव बनकर आ गई !
* * *
आ रही है हर तरफ़ से गुनगुनाहट की सदा,
क्या कोई बदली तेरी पाज़ेब से टकरा गई !
रेखाजी का जन्म विशाखापटटनम में हुवा है, दिल्ली में पली-बढ़ी,शादी भिवानी ( हरियाणा ) में मशहूर शायर सुमन अग्रवाल से हुवी है ! रेखा जी का बेटा गीतेश और बहूरानी अंजली भी कविता कहते है ! जेठ डॉ. मुकेश कुमार भी जाने माने शायर है !
तो इस किताब में सिर्फ गज़ले ही नही है बहतरीन नज्मे भी है ! मुझे तो ये किताब मेरे पसंदीदा शायर अनवारे इस्लाम साहब ने भेजी है ! अनवारे इस्लाम का फ़ोन. 0 98 93 66 35 36 है ! आप भी वही तरीका अपना सकते है ! फिर भी किताब में जो एड्रेस दिया है आपके लिए :-
मूल्य - 250
प्रकाशक
पहले पहल प्रकाशन
25 - ए, एम. पी. नगर, भोपाल
फ़ोन. : 94250 11789
और
मुद्रक
प्रियंका ऑफसेट
25 - ए, एम. पी. नगर, भोपाल
मुद्रक
प्रियंका ऑफसेट
25 - ए, एम. पी. नगर, भोपाल
फ़ोन. : 0755 - 2555789
चलते-चलते रेखाजी की कूछ ग़ज़लों के साथ अलविदा :-
क्या कहें किन फ़ासलों में खो गए
चलते-चलते रास्तों में खो गए
हाशिये पर आ गया था अपना नाम
और फिर हम हाशियों में खो गए
एक काशाना किया तामीर बस
कितने पत्थर, पत्थरों में खो गए
दोस्तों कुछ नौजवाँ एस दौर के
हैफ ! सारे बोतलों में खो गए
कट गया रिश्तों का जंगल आज यूँ
मेरे अपने दूसरों में खो गए
किन ग़लत हालात से गुजरें हैं लोग
हौसले भी हौसलों में खो गए
जिन से ' रेखा ' कुछ मेरा मतलब न था
प्यार के पल तज्रबों में खो गए
* * *
मेरे हाल पर रहम खाते हुए,
वो आये तो हैं मुस्कुराते हुए !
जहां दिल को जाना था ए साथिया,
वहीं ले गया मुजको जाते हुए !
ये तूफान कितना मददगार है,
चला है सफीना बढाते हुए !
मुझे याद फिर बिजलियां आ गइ,
नया आशियाना बनाते हुए !
जमाने की क्यूं अक्ल मारी गइ,
मेरे दिल का सिक्का भुनाते हुए !
ये हालात ने क्या असर कर दिया,
जो मैं रो पडी मुस्कुराते हुए !
ए 'रेखा' गमों कि मुहब्बत तो देख,
करीब आ गए दूर जाते हुए !
* * *
कोइ यह बात भी पूछे उसी से,
अंधेरा क्यूं खफा है रोशनी से !
तुम्हारे अपने ही कब काम आए,
तुम्हें उम्मीद तो थी हर किसी से !
अब येसे दर्द को क्या दर्द समझें,
जो सीने में दबा है खामोशी से !
नहीं भाती है दिल को कोइ सूरत,
हमें तो वास्ता है आप ही से !
तुम्हें पूजा, तुम्हें चाहा है मैने,
बडी तस्कीन है इस बन्दगी से !
किसी के लौट आने की खबर है,
बहुत बेचैन हूं मैं रात ही से !
बहुत खुशहाल हूं मैं आज 'रेखा',
कोइ शिकवा नहीं है जिन्दगी से !
( कोइ गलती रही हो तो, माफि चाहता हूं )
वो आये तो हैं मुस्कुराते हुए !
जहां दिल को जाना था ए साथिया,
वहीं ले गया मुजको जाते हुए !
ये तूफान कितना मददगार है,
चला है सफीना बढाते हुए !
मुझे याद फिर बिजलियां आ गइ,
नया आशियाना बनाते हुए !
जमाने की क्यूं अक्ल मारी गइ,
मेरे दिल का सिक्का भुनाते हुए !
ये हालात ने क्या असर कर दिया,
जो मैं रो पडी मुस्कुराते हुए !
ए 'रेखा' गमों कि मुहब्बत तो देख,
करीब आ गए दूर जाते हुए !
* * *
कोइ यह बात भी पूछे उसी से,
अंधेरा क्यूं खफा है रोशनी से !
तुम्हारे अपने ही कब काम आए,
तुम्हें उम्मीद तो थी हर किसी से !
अब येसे दर्द को क्या दर्द समझें,
जो सीने में दबा है खामोशी से !
नहीं भाती है दिल को कोइ सूरत,
हमें तो वास्ता है आप ही से !
तुम्हें पूजा, तुम्हें चाहा है मैने,
बडी तस्कीन है इस बन्दगी से !
किसी के लौट आने की खबर है,
बहुत बेचैन हूं मैं रात ही से !
बहुत खुशहाल हूं मैं आज 'रेखा',
कोइ शिकवा नहीं है जिन्दगी से !
~ _ ~
( कोइ गलती रही हो तो, माफि चाहता हूं )
lazwab aur nayab prastuti
ReplyDeleteबहुत बहुत शुख्रीया जनाब
Deleteवाह !!! क्या बात है,बहुत सुंदर समीक्षा की आपने रेखा जी की पुस्तक "यादों का सफ़र की ,,बधाई अशोक जी....
ReplyDeleteRECENT POST: गर्मी की छुट्टी जब आये,
…
बहुत बहुत शुख्रीया
Deleteशुभ प्रभात
ReplyDeleteआभार
अशोक भाई
अच्छे समीक्षक हैं आप
thank you
Deleteरेखा अग्रवाल जी की किताब 'यादों का सफ़र' का बहुत ही सुन्दर ढंग से परिचय और उनकी लेखनी की ताकत से रु-ब -रु कराने हेतु धन्यवाद .....
ReplyDeletebhot bhot shukhriya aapka
Deleteमैं पुनः और बार बार यही कहूँगा कि आप जो काम कर रहे हैं वह बहुत प्रशंसनीय है. बहुत अच्छी समीक्षा.
ReplyDeletebhot bhot shukhriya aap ka....
Deleteजीवन पगडंडियों पर चलकर मंजिल की तरफ बढ़ता जाता है
ReplyDeleteऔर अपने साथ यादों को झोली में रखता जाता है
सृजनशील इन यादों को उकेर देते हैं
रेखा जी ने यह सृजन गहन अनुभूतियों के साथ व्यक्त किया है
अशोक भाई आपने इसकी समीक्षा कर एक नयी
पहचान दे दी है
सुंदर सार्थक समीक्षा के लिये
धन्यवाद
sr aapka bhot bhot shukhriya............or e kya smixa kruga.............mene bs itna hi kha hai ki kitab muje psand aayi hai
Deleteक्या बात ...बेहतरीन गज़लें पढवाई
ReplyDeletebhot bhot shukhriya aapka
Deleteरेखा जी की किताब 'यादों का सफ़र' का बहुत ही सुन्दर ढंग से ...सार्थक समीक्षा के लिये
ReplyDeleteधन्यवाद
संजय कुमार
हरियाणा
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
thank you
Deleteरेखा जी की शायरी वाकई लाजवाब है..और आपकी समीक्षा ने उसमें चार चाँद लगा दिए..बधाई!
ReplyDeletethank you
Deleteचंद अशआर की बानगी के मुताबिक़ में कह सकता हूँ कि आप की किताब अच्छी है | सलाह यह है किआप इस किताब को ब्लॉग पर डाल दें |यदि समीक्षा हेतु भेजते हैं तो बहुत कायदे से समीक्षा पेश करने में मुझे खुशी होगी !
ReplyDeletesr aapne post bde dhyan se pdhi aapka bhot bhot shukhriya....sr meto bilkul aam insan hu abhi gazal ki duniya me bilkul bachcha hu.......mera yha kitab ke bare me jikr karne ka irada tha ki nyi kitab gazalo ki aayi hai nhi ki smixa karna...me to shyr bhi nhi hu or nahi koi smixshak.....jane aanjane me kuch galti huvi ho to mafi chahta hu...
Deletesr ye kitab rekha aagrval ji ki hai ashok bhai ki nhi hai pr ashok bhai agar ho ske to hmare liye kitab mangva dena
Deleteshukhriya
Deleteचंद अशआर की बानगी के मुताबिक़ किताब बहुत अच्छी है | मेरी राय में आप किताब को ब्लॉग में प्रकाशित करें | यदि समीक्षा हेतु किताब को भेजते हैं तो बड़े कायदे से समीक्षा पेश की जायेगी |वधाई !
ReplyDeleteor ha sr me to kitabe khridta hu ...muje koi smixsha hetu kitab kyu bhejaga ???? meto poora gazal ke mitar,chand ke bare me janta bhi nhi ..bhot km janta hu???mujse koi galti huvi ho to mafi chahta hoo sr sorry sr
Deletewaah bhot achchi bate likhkhi hai.........
Deleteaap smikshk nhi ho ye me janta hoo, aabhinadn
fir se aabhar aapka
Deletebahut khoob,, rekha ji ko badhaai aur ashok khachar ji ka aabhaar..... sab.. dil se.
ReplyDeletedil se..thank you
ReplyDeletekyaa baat he bahut aachchhe
ReplyDeleteshukriya
Delete