मुझ को महसूस कर के देख : सुमन अग्रवाल
ख़ुदारा लाज मेरे बालो-पर की रख देना
उड़ान पर हूं मैं इज्ज़त सफ़र की रख देना
कहीं पे रास्ता भटकूं अगर मेरे मौला
वहीं पे नींव नई रह गुज़र की रख देना
यही दुआ है,यही इल्तजा है,ए मालिक
मेरे हर ऐब पे चादर हुनर की रख देना
न हो कहीं पे भी फ़ाक़ा-कशी की मजबूरी
सदा ये आन ग़रीबों के घर की रख देना
न लौट आए वो टकराके आसमानों से
दुआ जो हाथ पे रखना असर की रख देना
हर एक रात के हमराह जल रहा हूं 'सुमन'
मेरे चिरागों में कुव्वत सहर की रख देना
मेरे गांव के आस-पास के शहरो में किताबें बहुत ही कम मिलती हैं !दोस्त जोगि जसदनवाला के घर कई बार जाने का मौका मिलता है ! जोगि की अपनि बहेतरीन लायब्रेरी है ! एक बार जोगि ने मुजे एक किताब हाथ मे थमा दी थी- मुझ को महसूस कर के देख - शायर है सुमन अगवाल !
मैं बच्चे की तरह मेले में गुम हूँ
कोई आकर मेरा बाजू पकड़ ले
ए वही शायर है जिसका जिक्र हम आगे की पोस्ट बोलती है २ मे शायरा रेखा अग्रवाल की किताब यादों का सफर मे हूआ था ! सुमन जी का सारा परिवार साहित्य से जूडा हुवा है ! पत्नि, बेटा, बहू, भाइ सब ! जोगि ने कइ बार सुमन जी क जिक्र करते है कि s.m.s. से उनसे बात होती रहेती है ! इस बात का समर्थन किताब से मिलता है कि सुमन जि s.m.s. के कितने शोखिन है !
शायर या कवि के ख्याल कभी भी पुराने नहीं होते सदा ही नयें और ताजगी भरे रहेते हैं ! और वहीं शायर है जो शायरी में कुछ नयापन लाये जिसे किसी भी दौर में कोई भी पढ़े उसी दौर का लगे ! सुमनजी ऐसे ही शायर है ! जो अपनि ग़ज़लों के कारण अपनि एक अलग पहेचान बना सके है !
पकड़ने को ख़ुशी की एक तितली,
मैं हर ग़म से उलज़ता जा रहा हूँ !
मुझे मंजिल ने ख़ुद आकर कहा है,
मैं कुछ आगे निकलता जा रहा हूँ !
उर्दू क मशहूर शायर राहत इन्दौरी ने इस किताब में सुमन जी के बारे में और उनकी शायरी के बारे में लिख्खा है :-
' सुमन अग्रवाल जी का मजमुए-कलाम-मुजको महसूस कर के देख की सारी गजले प्यारी और दिल को छू लेने वाली है ! ख़ुशी की बात ए है की सुमन अग्रवाल जैसे फ़ितरी और खुशफ़िक्र शायर की मादरी जुबान उर्दू नहीं है, वे उर्दू मै अच्छी शायरी कर रहे है जो उनकी उर्दू अदब से दिलचस्पी का सबूत है ! सुमन साहब की शायरी, सफासत, सादगी, रवानी और फ्सह्तरंगी का बेहतरीन नमूना है ! इस कामयाबी के लिये शायर मुबारकबाद के मुस्ताक हैं। '
:- राहत इन्दौरी
सुमन साहब कि गज़लें पढ़ कर महसूस किया कि सुमन साहब की ग़ज़लों में रवायत की मिठास और नये-पन की चुभन का अहसास इस दर्ज़ा है कि शे'र एक दम नश्तर की तरह सीने में उतर जाते है। सुमन साहब के शे'रों में हालात की गर्मी,ख़यालात की नर्मी और ज़ज्बात की मीठी चुभन का अहसास यकबयक अपने आप झलकने लगता है।
कई हालात के ज्वालामुखी हैं मेरे सीने में
बला की आग से चट्टान कब पानी नहीं होती
जहां पर लहर उठती हैं वहीं गिरदाब होते हैं
अगर चुपचाप हो दरिया तो तुगयानी नहीं होती हैं
आज के माहौल में स्वार्थ,दोगलापन और मतलब परस्ती पहले से कुछ ज़्यादा है, मौसमों के मिजाज़ भी बदले बदले से है और वातावरण भी काफी नागवार सा होता जा रहा है-ऐसे मुकाम पर शायर की कलम चुप कैसे रह सकती है। टीस भरे अंदाज़ में दुनिया के तजुर्बात और हवादिस को और मजरुह मंज़रो को यूँ पेश किया-
मैं अपने आपसे ख़ुद ही छिपा रहा लेकिन
मेरा वजूद बराबर मेरी तलाश में है
* * *
शराफ़त बाल खोले शहर में अक्सर भटकती है,
हमारे गाँव में तहज़ीब चुटिया गूँथ लेती है।
शे'रों में नयापन यकीनन इस नए दौर की देन है फिर भी सुमन साहब ने हस्बे ज़रूरत नये ख्यालात, नये ज़ज्बात और नई परवाज़ को रवायत के सांचे से गुजार कर एक नई तकमील को जन्म दिया है। शायरी खूंनेदिल और गुलकारीयों का दूसरा नाम है। किताब में जगह जगह आपको गुलकारी का अहसास तो होगा ही साथ साथ जुबान का मज़ा भी महसूस करने पर मजबूर रहेंगे।
बुढ़ापे में अभी तक भी छिपा मेरा वही बचपन
कहीं से भी मेरे टूटे खिलौने ढूंढ लाता है
* * *
मेरी दो पोतियों में, मेरा बचपन
मेरे कांधे पे चढ़कर, खेलता है
* * *
ग़ज़ल चाहे किसी भी भाषा में कही जाये, ग़ज़ल ही रहेगी। ग़ज़ल के शेर की दो पंक्तियाँ दोहों की तरह से स्वतंत्र विचार प्रस्तुत करती हैं। सुमन साहब की ग़ज़लों के हर शे'र में यक़ीनन वही ख़ासियत दिखलाय पड़ती है।जैसे हर शे'र का लफ्ज़ कुछ कह रहा हो, जैसे वह मस्ती में कूछ गुनगुना रहा हो या शे'र ताज़ा फूलों की तरह खुशबू बिखेर रहा हो। एसा लगता है कि किताब का हर शे'र कह रहा हो, मुझ को महसूस कर के देख।
मेरी तस्वीर को तुम कल से इस कमरे में मत रखना,
मैं यूं लटका हुआ दीवार पर अच्छा नहीं लगता।
हुनर में बदख्याली, बददमागी, बदजुबानी हो,
हुनर कैसा भी हो, ऐसा हुनर अच्छा नहीं लगता।
उर्दू के एक और मशहूर शायर मुहतरम मुनव्वर राणा साहब किताब में लिखते है की -
' ग़ज़ल संग्रह " मुझ को महसूस कर के देख " के सफहात पर सुमन साहब के शे'र नहीं है, उनका तजुर्बा है।उनकी आप बीती है हो जग बीती का दर्द छुपाये हुए है। शायर की आँख,दुनिया का सबसे पुराना कैमरा है। शायर का दिमाग भगवान का बनाया हुआ Computer है। शायर का दिल, दुनिया का सबसे पुराना आबाद इलाका है। एन तीनों Software की मदद से देखे हुए ख्वाब को शायरी कहते है। '
ज़ियादा बहस दीनो धर्म की अच्छी नहीं होती,
जरा सी बात भी लोगो में झगड़ा डाल देती है
* * *
फूंकनी पर है मेरे माँ के लबों की गरमी
घर का चूल्हा इसी गर्मी से सुलगता देखा
* * *
तुम्हारे वास्ते, मुल्के-अदम से आया हूँ
जहाँ से लौट के आना, कोई मज़ाक नही
* * *
कहां पर शौक था मुझको अज़ीज़ों, ख़ुदनुमाई का
मैं अपने आपसे अक्सर, तमाशा हो सा जाता हूँ
* * *
हम इसलिए भी न कोई, ख़ुदा तराश सके
तमाम शहर के पत्थर थे, पत्थरों की तरह
* * *
जो दिल से फूटके निकला था चीख़ की मानिंद
वो मेरे दर्दे मुहब्बत का, एक नगमा था
* * *
मुझको महसूस करके देख ज़रा
मैं हवा हूँ कहां नहीं हूँ मैं
* * *
कुछ तो होते है मुहब्बत में जुनूं के आसार
और कुछ लोग भी दीवाना बना देते है
* * *
मुझको महसूस करके देख ज़रा
मैं हवा हूँ कहां नहीं हूँ मैं
* * *
कुछ तो होते है मुहब्बत में जुनूं के आसार
और कुछ लोग भी दीवाना बना देते है
* * *
किताब पाने के लिए पता है-
प्रकाशक : सूर्यप्रभा प्रकाशन
2 /9 , अंसारी रोड, दरियागंज
नई दिल्ली- 110 002 ( india )
जाते जाते सुमन जी की एक ग़ज़ल -
आग से दूर, समंदर में जो घर रखते हैं
वो नजर वाले, हर इक शय पे नज़र रखते हैं
इस तरह मरना यक़ीनन, कोई आसन नहीं
मरने वाले भी तो, जीने का हुनर रखते हैं
राहे मुश्किल के इरादों का, कोई खौफ नहीं
हौसले वाले अजब अज्मे-सफर रखते है
अपने बारे में हमें कोई ख़बर हो कि न हो
हम मगर सारे जमाने की रखते हैं
अपनी हस्ती पे नहीं जिनको भरोसा ए 'सुमन '
वक़्त के पैरों में, अक्सर वही सर रखते हैं
* * *
* * *
आप सभी से माफी चाहूंगा की ईस पोस्ट में बहोत गलतीयां रही है....क्यु की मेरे गांव में पिछले १० दिन में एक ही परीवार के ७ लोगो की " कोंगो " नामके वाईरस से मोत हुई है....८ लोग अस्पताल में भरती है और सारे ईलाके मे अफरा तफरी मची है फिलहाल स्थिती काबू मे आ गई है लिकीन मैं जा रहा हूं समाज सेवा में ..और किसी की पोस्ट ना पढ पाया , कोमेन्ट न दे पाया तो माफी ....तो पोस्ट जैसी है वैसी पेश है ....
बहुत ही सुंदर
ReplyDeleteलाजवाब पोस्ट
हार्दिक शुभकामनायें ....
.
!!
क्यु की मेरे गांव में पिछले १० दिन में एक ही परीवार के ७ लोगो की " कोंगो " नामके वाईरस से मोत हुई है....८ लोग अस्पताल में भरती है और सारे ईलाके मे अफरा तफरी मची है फिलहाल स्थिती काबू मे आ गई है लिकीन मैं जा रहा हूं समाज सेवा में .
take care
God Bless all
धन्यवाद
Deleteलाजवाब
Deleteधन्यवाद
Deleteबहुत खूब रु-बी-रु कराया है सुमन अग्रवाल जी से .पूरी पोस्ट लाज़वाब है ...
ReplyDeleteशायरी दिल से अपने तजुर्बे को बयाँ कर रही है .....
बुढ़ापे में अभी तक भी छिपा मेरा वही बचपन
कहीं से भी मेरे टूटे खिलौने ढूंढ लाता है
वाह!
धन्यवाद
Deleteबहुत सुन्दर वर्णन .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (22.07.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी. कृपया पधारें .
ReplyDeletethank you
Deleteबहुत सुन्दर,बहुत खूब
ReplyDeletethank you
Deleteबहुत सुन्दर वर्णन ..
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteबहुत सुन्दर वर्णन ..
ReplyDeleteआग से दूर, समंदर में जो घर रखते हैं
वो नजर वाले, हर इक शय पे नज़र रखते हैं
बहुत सुंदर
यहाँ भी पधारे ,
हसरते नादानी में
http://sagarlamhe.blogspot.in/2013/07/blog-post.html
thank you
Deleteसुमन अग्रवाल जी के परिचय का बहुत आभार !
ReplyDeletethank you
Deleteसुमन जी से परिचय करवाने के लिए बहुत बहुत आभार...
ReplyDeletethank you
Deleteसुमन साहब की गज़लों से नगीने छांट के निकाले हैं आपने ...
ReplyDeleteहर शेर की कहाँ जुदा और अंदाज़ बेबाकी ... खूबसूरत परिचय है इन गज़लों और गज़लकार से ...
thank you
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें *******
पूरी पोस्ट लाज़वाब है,हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteधन्यवाद इस पोस्ट के ज़रिये कई शानदार क्षणिकाएं व शायरियाँ पढ़वाने के लिय..ये किताब महज़ बोलती नहीं ये तो वाचाल है....
ReplyDeletethank you.aapne post gaur se padhi
Deletetoo good thanks for shearing bro
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