मेरा मिट्टी है सरमाया - दिनेश मंज़र
- दिनेश मंज़र की गज़लें
शोर में क्या कहा, सुना जाए
आज ख़ामोश ही रहा जाए
मेरे हिस्से की ख़ुशनुमा नींदें
कौन हँस-हँस के छिनता जाए
भीड़ के आसपास हैं पत्थर
अपना चेहरा बचा लिया जाए
काश ! सपनों को पंख लग जाएँ
आज की रात बस उड़ा जाए
20 जूलाई को मैं देर रात तक़ अपने निजी मुक़द्दमें की फ़िक्र में सो नहीं पाया था ! 4 बजे तक मुझे याद है की मुझे नींद नहीं आई थी ! सुब्ह जल्दी जागने की जरुरत भी नहीं थी, 21 को 11-30 को फोन की रिंग बजी, हल्लो कहा - आवाज आई " आपका पोस्ट का पता दो मै किताब भेजता हूँ मुहतरम अनवारे इस्लाम साहब ने कहा है ! "
7 अगस्त को डाक से दो किताब मिली ! शायर है दिनेश मंज़र - मेरा मिट्टी है सरमाया ! फोन भी शायर दिनेश मंज़र साहब का ही था ! किताब के पन्ने इधर उधर किये पढ़ हैरान हो गया ! और एक बार पढ़ना शरु किया तो ख़त्म ही कर के छोड़ा ! 3 बार पढ़ चूका हूँ इस किताब को !
मेरी पूजा है किसी तोतले बच्चे जैसी
बोलना मुझको भी अच्छे से सिखाये कोई
* * *
दुख का कोई साथ न दे
सुख के दावेदार बहुत
* * *
एक मेला है यूँ तो अपनों का
चंद रिश्ते ही ख़ास होते है
* * *
बोलती हैं हर तरफ ख़ामोशियाँ
जब से हम तेरे हवाले हो गये
* * *
बता दो पत्थरों ! सारे नगर को
मैं इक ख़ुश्बू का पैकर ढूंढता हूँ
* * *
सुख के दावेदार बहुत
* * *
एक मेला है यूँ तो अपनों का
चंद रिश्ते ही ख़ास होते है
* * *
बोलती हैं हर तरफ ख़ामोशियाँ
जब से हम तेरे हवाले हो गये
* * *
बता दो पत्थरों ! सारे नगर को
मैं इक ख़ुश्बू का पैकर ढूंढता हूँ
* * *
दिनेश मंज़र साहब का मूल नाम दिनेश कुमार सोनी है ! साहब ने राजनीति शास्त्र में स्नातक दिल्ली विश्वविधालय से किया है ! दिनेश मंज़र साहब सहायक लेखा अधिकारी, भारत सरकार,वर्तमान में विदेश मंत्रालय में नियुक्त है ! दिनेश मंज़र साहब के काव्य-गुरु श्री आचार्य सारथी रूमी जी है !
ग़ज़ल संकलन मेरा मिट्टी है सरमाया में लगभग सौ गज़लें है ! आज के दौर में किसी भी कवि-शायर में सामाजिक और राजनीति की समझ और हालात का लेखा-जोखा करने का हूनर बहुत जरुरी है, जो दिनेश मंज़रजी को सहज प्राप्त हो गया है ! वो जो भी बात करते है बड़ी आसानी से आसान आल्फाज़ों में कह देते है ! कुछ अशआर -
जिनकी झूठी बात भी सच्ची लगती थी
वो मेरे सच को झुठलाये फिरते है
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मैं तो मुन्सिफ़ हूँ, जमाने की नज़र में लेकिन
फ़र्के-इन्साफ़ को सूली पे चढ़ाऊँ कैसे ?
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आम लोगों की बेबसी छलकी
आपकी ख़ास - ख़ास शामों में
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तन्ज़ की भाषा में मुझसे गुफ़्तगू करते हैं सब
क्या मेरा अस्तित्व है बस तन्ज़ करने के लिए
* * *
काँपता है ज़मीर क्यूँ मेरा
चंद जलते हुए सवालों से
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मैंने अपने ख़ून से गुलशन सिचां था
तेरे ज़िम्मे क्यूँ इसकी रखवाली है
* * *
* * *
दिनेश मंज़र साहब का यें पहला ही ग़ज़ल संग्रह है फिर भी ग़ज़लों के हर एक शे'र कुछ नयेपन से सामने आते है ! जितने सुकून से पढ़ेंगें उतना ही गहेराई में ले जायेगा ! हिन्दी-उर्दू ग़ज़ल पर बात करते समय एक बात स्पस्टता से मानी जा सकती है की समानता की दृष्टी से दोनों भाषाएँ नजदीक है ! ग़ज़ल कहेते वक़्त हिन्दी में उर्दू की मिठास और उर्दू में हिन्दी की शब्दावली का स्वाभाविक रूप से सम्मिश्रण देखा जा सकता है ! मंज़र साहब की ग़ज़लों में दोनों भाषा का प्रभाव है !मुझे यकीं है एक दिन दोनों भाषा के लोग मंज़र साहब पर फक्र करेंगे !लिजियें एक ख़ुबसूरत ग़ज़ल -
ज़िन्दगानी की हसीं शाम अभी बाक़ी है
वक़्त का रेशमी पैग़ाम अभी बाक़ी है
तेरे हिस्से में तो फ़ुरसत है ज़माने भर की
मेरे हिस्से का बहुत काम अभी बाक़ी है
ज़िन्दगी ! पेश क्यूँ आती है परायों जैसी
मेरे होठों पे तेरा नाम अभी बाक़ी है
मेरी पलकों में छुपी प्यास अभी तक है जवाँ
तेरी आँखों का हसीं जाम अभी बाक़ी है
तेरे एहसास का 'मंज़र' है भले लासानी
मेरे ज़ज्बात का अन्जाम अभी बाक़ी है
* * *
दिनेश मंज़र आज के दौर के शायर है वो लाचारी यां मायूसी भरी बाते कम, और उमीद से भरी बातें ही ज्यादा करते है ! आने वाले कल की एक तस्वीर भी उसकी नजर में है ! साथ ही आज के दौर में जो भी देखा है ग़ज़ल के माध्यम से साफ-साफ लफ़्ज़ों में मुँह पर कह दिया हैं !
मत पूछिये कि कौन-से मंज़र नज़र में है
टूटे तमाम आइने आँखों के घर में है
भूखे किसी ग़रीब का चर्चा नहीं कहीं
ऊँचे घरों के भोज भी देखो ख़बर में है
हम ख़ुद करेंगे एक दिन ज़ुल्मों का फ़ैसला
जो कर रहे है ज़ुल्म हमारी नज़र में है
मैं सोचता था ज़िन्दगी आसान हो गई
धब्बे लहू के कैसे मेरी रहगुज़र में है
* * *
* * *
मंज़र साहब की आँखें आने वाले सुनहरे कल को देखते है ! वर्तमान चाहे जैसा रहा हो वो उम्मीद का दिया जलाये हुयें है ! हौसला और हिम्मत भी देते है !
अगली रुत में शायद मुझको प्यार मिले
ये मौसम तो गम से रिश्ता जोड़ गया
* * *
जब भी देती हैं ठोकरें राहें
मैं और तेज़ दौड़ पड़ता हूँ
* * *
फलक़ से चाँद चुराने की रात आई है
सितारे तोड़ के लाने की रात आई है
* * *
कोई मेरे साथ नहीं था
पर, मैनें कब हिम्मत हारी?
* * *
इस किताब से शे'र यां ग़ज़ल चून कर रखना बड़ा मुश्किल काम है ! कितने शे'र ब्लॉग पर रखूँगा !!! फिर भी इस दौर के सियासी माहोल और हालत पर थोड़े शे'र -
अब असली सिक़्क़े हैं ख़ुद पर शर्मिन्दा
नकली सिक्कों ने वो जगह बना ली है
* * *
सोने के सिक्कों, चाँदी के चम्मच का
क्या लेना, देना मजदूर, किसानों से
देख रहे हैं 'मंज़र' ख़ूब तबाही के
आज के राजा, रानी रोज विमानों से
* * *
आने वाले वक़्त में दिनेश मंज़र साहब से हमारी उम्मीदे बहुत बढ़ गई है ! भविष्य में जो कुछ भी लिखेंगे वह अधिक परिपक्व, प्रभावशाली और जिंदगी की सच्चाई को पूरी शिद्दत से बयान करेगा ! मैं चाहता हूँ जल्दी एक और किताब का गुलदस्ता हमारे हाथ में दे !
इस किताब को पाने के लिए ज्यादा तकलीफ नहीं उठानी पड़ेगी आपको -
इस किताब को पाने के लिए ज्यादा तकलीफ नहीं उठानी पड़ेगी आपको -
प्रकाशक : आशीष प्रकाशन
100, देवीमूर्ति कॉलोनि, पानीपत
फोन : 09650033037
मूल्य : 200/- रुपये
मूल्य : 200/- रुपये
दिनेश मंज़र साहब से पूछ कर भी इस अनमोल किताब को पाया जा सकता है ! दिनेश मंज़र साहब को मिलने का फेसबुक लिंक ( Dinesh Soni Manzar ) ! दिनेश मंज़र साहब का फोन नं. 09968898788 है ! आपको ग़ज़लें पसंद आई हो तो मुबारक बाद, बधाई जरुर देना ! जाते जाते दो गज़लों के साथ आलविदा ! कहीं गलती रही हो माफी चाहूँगा !
तू जो मुझको जबान दे देता
तेरी ख़ातिर मैं जान दे देता
मौत से डर गया था मैं वर्ना
तेरे हक़ में बयान दे देता
प्यार की इन्तहा से यूँ गुज़रा
एक पल में ये जान दे देता
आदमी हूँ, ज़मीन है मेरी
तू भले आसमान दे देता
यार ! 'मंज़र' बदल गया वर्ना
मैं तुझे ये जहान दे देता
* * *
* * *
प्यार के साथ प्यार की बातें
जैसे रंगो-बहार की बातें
ज़िन्दगी भर हमें लगी झूठी
ज़िन्दगी के क़रार की बातें
कौन जाने कि कैसे आम हुई
राज़ की राज़दार की बातें
आदमी वक़्त का गुलाम रहा
कौन करता है हार की बातें
आज मंज़र लगीं उसे प्यारी
बाद मुद्दत के यार की बातें
तेरी ख़ातिर मैं जान दे देता
मौत से डर गया था मैं वर्ना
तेरे हक़ में बयान दे देता
प्यार की इन्तहा से यूँ गुज़रा
एक पल में ये जान दे देता
आदमी हूँ, ज़मीन है मेरी
तू भले आसमान दे देता
यार ! 'मंज़र' बदल गया वर्ना
मैं तुझे ये जहान दे देता
* * *
* * *
प्यार के साथ प्यार की बातें
जैसे रंगो-बहार की बातें
ज़िन्दगी भर हमें लगी झूठी
ज़िन्दगी के क़रार की बातें
कौन जाने कि कैसे आम हुई
राज़ की राज़दार की बातें
आदमी वक़्त का गुलाम रहा
कौन करता है हार की बातें
आज मंज़र लगीं उसे प्यारी
बाद मुद्दत के यार की बातें
बेहतरीन गज़लें खरीदकर पढ़ना चाहूँगा बधाई
ReplyDeleteShukrguzaar Hun
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति. ऐसे ही हमें रचनाकारों से आशना कराते रहें.
ReplyDeletethank you
Deleteबहुत सुंदर आप इसी तरह रचनाकारों से मिलवाते रहे,,,साझा करने के लिए आभार,,,
ReplyDeleteRECENT POST: आज़ादी की वर्षगांठ.
bhut bhut shukriya
Deleteलाजवाब गज़लों का संकलन लग रहा है दिनेश मंज़र साहब का ... आपने इस किताब से कुछ नगीने दिखाए हैं .. उनकी चमक बेताब कर रही है इस पुस्तक को पढ़ने के लिए ... आपका आभार इस परिचय के लिए ...
ReplyDeletebhut bhut shukriya sir
Deleteबहुत उम्दा गज़लें...इस सुन्दर परिचय और पुस्तक समीक्षा के लिए आभार...
ReplyDeletethank you sir
Deletebahut umda, shukriya ashok bhai
ReplyDeletethank you
Deletebahut sunder gazlein .....aabhar ...!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (26.08.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें .
ReplyDeleteNeeraj Kumar bhai bahut bahut shukhriya aapka...
Deleteसुन्दर परिचय और पुस्तक समीक्षा के लिए आभार...अशोक जी
ReplyDeleteकाफी दिनों से व्यस्त होने के कारण ब्लॉगजगत को समय नहीं दे पा रहा हूँ
koi bat nhi bhai.......
Deleteधन्यवाद इस बेहतरीन पुस्तक से परिचित कराने के लिये।।।
ReplyDeleteaabhar
ReplyDeleteकाश ! सपनों को पंख लग जाएँ
ReplyDeleteआज की रात बस उड़ा जाए
लाजबाव समीक्षा , बेहतरीन रचनाएं !
bahut bahut shukhriya aapka...
Deleteसार्थक सृजन की, सोच की, सुंदर गजलें
ReplyDeleteशानदार कहन
दिनेश मंजर जी को बहुत बहुत बधाई
आशोक भाई आपका आभार इस तरह सार्थक रचनाओं को पढ़वाने का
उत्कृष्ट प्रस्तुति --------
bahut bahut shukhriya aapka...
Deletebahut hi achchhi gazale he... maza aa gayaa....
ReplyDeleteaabhar
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