Saturday 14 September 2013

क़मर इक़बाल की गज़लें


क़मर इक़बाल 

हर ख़ुशी  मक़बरों पे लिख दी है 
और  उदासी  घरों पे लिख दी है

एक आयत सी दस्त-ए-कुदरत ने
तितलियों के परों पे लिख दी है 

जालियों को तराश कर किस ने
हर दुआ पत्थरों पे लिख दी है 

लोग यूं सर छुपाए फिरते है
जैसे क़ीमत सरों पे लिख दी है

हर वरक़ पर है कितने रंग ' क़मर '
हर ग़ज़ल मंजरों पे लिख दी है
* * *
जीना है सब के साथ कि इंसान मैं भी हूँ
चेहरे बदल बदल के परेशान मैं भी हूँ

झोंका हवा का चुपके से कानों में कह गया
इक काँपते दिए का निगहबान मैं भी हूँ

इंकार अब तुझे भी है मेरी शनाख्त से
लेकिन न भूल ये तेरी पहचान मैं भी हूँ

आँखों में मंज़रों को जब आबाद कर लिया
दिल ने किया ये तंज़ कि वीरान मैं भी हूँ

अपने सिवा किसी से नहीं दुश्मनी ' क़मर '
हर लम्हा ख़ुद से दस्त ओ गरेबान मैं भी हूँ
* * *
ख़ुद की खातिर न ज़माने के लिए ज़िंदा हूँ
कर्ज़ मिट्टी का चुकाने  के लिए ज़िंदा हूँ

किस को फ़ुर्सत जो मिरी बात सुने ज़ख्म गिने
ख़ाक हूँ ख़ाक उड़ाने  के लिए ज़िंदा हूँ

लोग जीने के ग़रज-मंद बहुत है लेकिन
मैं मसीहा को बचाने  के लिए ज़िंदा हूँ

रूह आवारा न भटके ये किसी की ख़ातिर
सरे रिश्तों को भुलाने  के लिए ज़िंदा हूँ

ख़्वाब टूटे हुए रूठे हुए लम्हे वो 'क़मर'
बोझ कितने ही उठाने  के लिए ज़िंदा हूँ
* * *

21 comments:

  1. बेहतरीन ग़ज़लें , बहुत ख़ूब

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  2. शुभप्रभात
    जालियों को तराश कर किस ने
    हर दुआ पत्थरों पे लिख दी है
    आँखों में मंज़रों को जब आबाद कर लिया
    दिल ने किया ये तंज़ कि वीरान मैं भी हूँ
    किस को फ़ुर्सत जो मिरी बात सुने ज़ख्म गिने
    ख़ाक हूँ ख़ाक उड़ाने के लिए ज़िंदा हूँ
    हार्दिक शुभकामनायें

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  3. बेहतरीन गजल,साझा करने के लिए आभार...

    RECENT POST : बिखरे स्वर.

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  4. वाह अशोक जी .. हरेक ग़ज़ल खुद में नायाब है ...आपकी इस उत्कृष्ट रचना की प्रविष्टि कल रविवार, 15 सितम्बर 2013 को ब्लॉग प्रसारण http://blogprasaran.blogspot.in पर भी... कृपया पधारें ... औरों को भी पढ़ें |

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  5. लोग यूं सर छुपाए फिरते है
    जैसे क़ीमत सरों पे लिख दी है....वाह ....
    .........बेहतरीन गजल,......

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  6. ख़ुद की खातिर न ज़माने के लिए ज़िंदा हूँ
    कर्ज़ मिट्टी का चुकाने के लिए ज़िंदा हूँ ...

    कमर इकबाल साहब ने समा बाँध दिया ... बहुत ही लाजवाब ओर खूबसूरत अशआर हैं जो दिल को छूते हैं ... आपका आभार इनकी गज़लों से रूबरू कराने का ...

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  7. ब्लॉग प्रसारण लिंक 9 - कमर इक़बाल की गज़लें [अशोक खाचर]
    जानदार शानदार धारदार बेमिसाल जिन्दबाद गज़लें वाह वाह वाह दिल से ढेरों बधाई कमर साहब को हार्दिक आभार अशोक भाई आपने इतनी सुन्दर ग़ज़लों को पढवाया.

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    1. बहुत बहुत शुक्रीया आपका............

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  8. लोग जीने के ग़रज-मंद बहुत है लेकिन
    मैं मसीहा को बचाने के लिए ज़िंदा हूँ

    बेहतरीन ....आपका आभार कमर साहब की गज़लें पढवाने के लिए

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  9. BAHUT BEHATAREEN......ASHOK BHAAI KAA AABHAAR, QAMAR IQBAAL JI KO BADHAAI.

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  10. बेहतरीन गजल,साझा करने के लिए आभार...अशोक जी

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  11. Behtarin ghazalen, kya inki koi kitab shya hui hai?

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