अमजद इस्लाम अमजद
तुम से बिछड़ कर पहरों सोचता रहता हूँ
अब में क्यूँ और किस की खातिर ज़िंदा हूँ
मेरी सोचें बदलती जा रही हैं
के यह चीजें बदलती जा रही हैं
तमाशा एक है रोज़-ए-अज़ल से
फ़क़त आँखें बदलती जा रही हैं
बदलते मंज़रों के आईने में
तेरी यादें बदलती जा रही हैं
दिलों से जोडती थी जो दिलों को
वोह सब रस्में बदलती जा रही हैं
न जाने क्यों मुझे लगता है अमजद
के वो नजरें बदलती जा रही हैं
हमें तो वो बोहत अच्छे लगे हैं
न जाने हम उन्हें केसे लगे हैं
तो क्या यह पर निकलने का है मौसम
हवा मैं जाल से खुलने लगे हैं
नए कातिल का इस्तकबाल है क्या
पुराने ज़ख़्म क्यों भरने लगे हैं
अजब है यह तलिस्स्म हम-जुबानी
पराये लोग भी अपने लगे हैं
दिलों का भेद अल्लाह जनता है
बजाहिर आदमी अच्छे लगे हैं
चलेगी यह परेशानी कहाँ तक
बता ए घर की वीरानी कहाँ तक
बहोत लम्बी थी अब के, खुश्क'साली
बरसता आंख से पानी कहाँ तक
तेरे टूटे हुए गजरों के होते
महेकती रात की रानी कहाँ तक
रुकेगी कब तलक साँसों में खुशबु
उड़ेगा रंग यह धानी कहाँ तक
खिलौना है इसे तो टूटना है
करें दिल की निगेहबानी कहाँ तक
उसे बादल बुलाते है हमेशा
समंदर मैं रहे पानी कहाँ तक
आज यूँ मुस्कुरा के आये हो
जेसे सब कुछ भुला के आये हो
यह निशानी है दिल के लगने की
यह जो तुम आज जा के आये हो
क्यूँ झपकती नहीं मेरी आँखें
चांदनी में नहा के आये हो
दिल समंदर में चाँद सा उतरा
केसी खुशबु लगा के आये हो
क्या बहाना बना के जाना है
क्या बहाना बना के आये हो
आ गये हो तो आओ, बिस्मिल्लाह
देर, लेकिन लगा के आये हो
चाँद के साथ कई दर्द पुराने निकले
कितने ग़म थे जो तेरे ग़म के बहाने निकले
फ़स्ले-ए-गुल आई फिर इक बार असीरान-ए-वफ़ा
अपने ही खून के दरया में नहाने निकले
दिल ने इक ईंट से तामीर किया ताज-महल
तूने इक बात कही लाख फ़साने निकले
दश्ते-ए-तनहाई-ए-हिज्राँ में खड़ा सोचता हूँ
हाय क्या लोग मेरा साथ निभाने निकले
.......
कहाँ आ के रुकने थे रास्ते कहाँ मोड़ था उसे भूल जा
वो जो मिल गया उसे याद रख जो नही मिला उसे भूल जा
वो तेरे नसीब की बारिशें किसी और छत पे बरस गई
दिल-ए-बेखबर मेरी बात सुन उसे भूल जा उसे भूल जा
मैं तो गुम था तेरे ही ध्यान में तेरी आस में तेरे गुमान में
हवा कह गई मेरे कान में मेरे साथ आ उसे भूल जा
तुझे चाँद बन के मिला था जो तेरे साहिलों पे खिला था जो
वो था एक दरिया विसाल का सो उतर गया उसे भूल जा
कहाँ आ के रुकने थे रास्ते कहाँ मोड़ था उसे भूल जा
वो जो मिल गया उसे याद रख जो नही मिला उसे भूल जा
वो तेरे नसीब की बारिशें किसी और छत पे बरस गई
दिल-ए-बेखबर मेरी बात सुन उसे भूल जा उसे भूल जा
मैं तो गुम था तेरे ही ध्यान में तेरी आस में तेरे गुमान में
हवा कह गई मेरे कान में मेरे साथ आ उसे भूल जा
तुझे चाँद बन के मिला था जो तेरे साहिलों पे खिला था जो
वो था एक दरिया विसाल का सो उतर गया उसे भूल जा
behatareen gazlo ka khoobshurat guldasta
ReplyDeletethank you
Deleteचलेगी यह परेशानी कहाँ तक
ReplyDeleteबता ए घर की वीरानी कहाँ तक
बहोत लम्बी थी अब के, खुश्क'साली
बरसता आंख से पानी कहाँ तक
दिल को छु गए
इस खूबसूरत प्रस्तुति के लिए
हार्दिक बधाई और शुभकामनायें
thank you
Deleteअशोक जी पहले एक गुज़ारिश आपसे .....इतनी बेहतरीन गज़लों को आप एक-एक करके बड़े प्यार और सुकून से सुनवाएं .और मिलवायें तो मज़ा दुगना हो जायेगा और ग़ज़लों के साथ भी इन्साफ होगा ..इतनी अच्छी ग़ज़ल तो समझ के पड़ी जाती है न के सरसरी तौर पर पढने से आनंद नही आता ...
ReplyDeleteबाकि आप जैसा ठीक समझे ........हम तो आनद ले ही रहें हैं !
दिलों से जोडती थी जो दिलों को
वोह सब रस्में बदलती जा रही हैं
शुक्रिया.....
अरे सर गुजारिश नहीं हूक्म करे........आप जेसा चाहेंगे वेसा ही होगा अए ब्लोग आपका ही है........आप विस्तार से नुझे समजाये ताकी अगली बार गलती न हो....मेरा इमेल ashokkhachar56@gmail.com में इन्तझार करुंगा
Deleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा सोमवार (10-06-2013) के चर्चा मंच पर लिंक
ReplyDeleteकी गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
aapka sukhriya
Deleteबहुत सुन्दर एवं प्रभावशाली प्रस्तुति .. आपकी यह रचना दिनांक ९/०६/२०१३ यानी रविवार को 'ब्लॉग प्रसारण' http://blogprasaran.blogspot.in/ .. पर लिंक की जा रहि है| कृपया पधारें , औरों को भी पढ़ें..
ReplyDeleteaapka sukhriya
Deleteवाह! क्या खूबसूरत गजल .. बहुत खूब.
ReplyDeleteशुक्रिया.....
Deleteसुन्दर रचना खूबसूरत गजल
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteजनाब अमजद इस्लाम अमजद साहब के खूबसूरत कलाम को सलाम।
ReplyDeleteबहोत बहोत शुक्रीया सर आपका हार्दीक स्वागत है
Deleteशानदार,बहुत उम्दा प्रस्तुति साझा करने के लिए ,,,आभार और बधाई ,,,
ReplyDeleteRECENT POST: हमने गजल पढी, (150 वीं पोस्ट )
शुक्रिया
Deleteखूबशूरत अहसास से लबरेज़ गजल, बेहद संजीदगी से तर -बतर
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteअच्छा लगा
aapka sukhriya
Deletevaah behtareen
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteअमजद इस्लाम साहब की इन लाजवाब गज़लों ने आज का दिन बना दिया ...
ReplyDeleteबुत ही खूबसूरत ... उस्तादों की बात कुछ अलग ही होती है ... ये ऐसी गज़लों को पढ़ने के बाद लगता है ... शुक्रिया अशोक साहब ...
शुक्रिया
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ReplyDeleteबदलते मंज़रों के आईने में
तेरी यादें बदलती जा रही हैं
दिलों से जोडती थी जो दिलों को
वोह सब रस्में बदलती जा रही हैं
गजलों की दुनियां से चुनिंदा गजलों को साझा करने
का आभार
बेहतरीन प्रस्तुति
सादर
aapka sukhriya
Deleteदश्ते-ए-तनहाई-ए-हिज्राँ में खड़ा सोचता हूँ
ReplyDeleteहाय क्या लोग मेरा साथ निभाने निकले
ओशक जी क्या बात इतनी शानदार ग़जले पेश की है, जिसकी जितनी तारीफ की जाये कम है।
शुक्रिया आपका दिल से
bahut bahut shukriaaa
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