निदा फ़ाज़ली
निदा फ़ाज़ली
गरज बरस प्यासी धरती पर पानी दे मौला
चिड़ियों को दाने,बच्चों को गुडधानी दे मौला
दो और दो का जोड़ हंमेशा चार कहां होता है
सोच समजवालों को थोड़ी नादानी दे मौला
फिर रोशन कर ज़हर का प्याला चमका नई सलीबें
झुठों की दुनिया में सच को ताबानी दे मौला
फिर मूरत से बाहर आकर चारो ओर बिखर जा
फिर मंदिर को कोई मीरा दीवानी दे मौला
तेरे होते कोई किसी की जान का दुश्मन क्यों हैं
जीने वालों को मरने की आसानी दे मौला
* * * * *
अब ख़ुशी है न कोई ग़म रुलाने वाला
हमने अपना लिया हर रंग ज़माने वाला
हर बे-चेहरा सी उम्मीद है चेहरा चेहरा
जिस तरफ़ देखिये आने को है आने वाला
उसको रुखसत तो किया था मुझे मालूम न था
सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला
दूर के चाँद को ढूँढ़ो न किसी आंचल में
ये उजाला नहीं आँगन में समाने वाला
इक मुसाफ़िर के सफ़र जैसी है सबकी दुनिया
कोई जल्दी में कोई देर में जाने वाला
हर बे-चेहरा सी उम्मीद है चेहरा चेहरा
जिस तरफ़ देखिये आने को है आने वाला
उसको रुखसत तो किया था मुझे मालूम न था
सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला
दूर के चाँद को ढूँढ़ो न किसी आंचल में
ये उजाला नहीं आँगन में समाने वाला
इक मुसाफ़िर के सफ़र जैसी है सबकी दुनिया
कोई जल्दी में कोई देर में जाने वाला
अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफर के हम हैं
रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं
पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता हैं
अपने ही घर में किसी दुसरे घर के हम है
वक़्त के साथ है मिट्टी का सफर सदियों से
किसको मालूम है कहाँ के किधर के हम हैं
चलते रहते है की चलना है मुसाफ़िर का नसीब
सोचते रहते है कि किस रहगुज़र के हम हैं
behatareen, bahut khoob
ReplyDeletethank you
Deleteशुभप्रभात
ReplyDeleteअब ख़ुशी है न कोई ग़म रुलाने वाला
हमने अपना लिया हर रंग ज़माने वाला
उम्दा गजल
खूबसूरत प्रस्तुति
हार्दिक शुभकामनायें
thank you
Deleteवक़्त के साथ है मिट्टी का सफर सदियों से
ReplyDeleteकिसको मालूम है कहाँ के किधर के हम हैं
.....क्या कहने, बेहद उम्दा गजल
जरूरी कार्यो के ब्लॉगजगत से दूर था
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ !
thank you
Deleteशुभ प्रभात
ReplyDeleteपसंदीदा ग़ज़लें प्रस्तुत की अशोक भाई आपने आज
खुश किया.....
सादर
thank you didi
Deleteबहुत उम्दा,लाजबाब गजल ,, साझा करने के लिए आभार
ReplyDeleteRecent post: ओ प्यारी लली,
thank you
Deleteआपकी यह उत्कृष्ट रचना कल दिनांक २ जून २०१३ को http://blogprasaran.blogspot.in/ ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है , कृपया पधारें व औरों को भी पढ़े...
ReplyDeleteमै तहे दिल से शुख्र गुजार हूं आपका.......
Deleteबहुत खुबसूरत ग़ज़लें ...पढवाने और सुनवाने के लिए
ReplyDeleteआभार !
खुश रहें!
शुख्र गुजार हूं आपका.......
Deleteमहान शायर की लाजवाब गज़ल और कमाल की आवाज़ ...
ReplyDeleteदोनों ही ग़ज़लें बेहतरीन ..
तेरे होते कोई किसी की जान का दुश्मन क्यों हैं
ReplyDeleteजीने वालों को मरने की आसानी दे मौला---------
निदा फाजली प्रगतिशील विचाधारा के शायर हैं
इन्हें पढ़ना समझना अपने आप में सुखद अनुभव है
आपका बहुत बहुत आभार इन्हें पढ़वाने का
उत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर
thank you
ReplyDeleteनिदा फ़ाज़ली को पढवाने के लिए आभार आपका
ReplyDelete