Wednesday 15 May 2013

किताबें बोलती है - 3


ज़ज्बात : मनु 


दूर जाने से किसने रोका है 
बस ख़यालों से परे रहने की 
इज़ाज़त नही तुझे 


तेरी तलाश जब भी ख़त्म करनी चाही मैंने
सारी दुनिया घूम कर 
बस ख़ुद को आईने में देख लिया 
तेरा वज़ूद इस कदर हावी है  मुझपर
* * *
''तसव्वुर ' बन के उसने 
'उसकी ' सारी ज़िन्दगी एक खूबसूरत ''ख़्वाब'' बना दी थी 
* * *
           यहाँ उस बेहतरीन किताब के अंश है जिसकी कवयत्री है ' मनु ' ! किताब का नाम है ज़ज्बात ! मनु जी से यूँ तो मेरी मुलाक़ात नही हुई पर मुलाक़ात हुई है यानि फेसबुक पर ! बातो बातो में पता चला किताब के बारे में, मेने पुछा कहा मिलेगी ? पता मिला, मंगवाई, और पढकर हैरान हो गया !! दर्द को क्या बयाँ किया है !!बहुत खूब !!

          पहले जान लेते है कवयत्री के बारे में ! मनु जी का जन्म देहरादून मे हुआ ! अंग्रेजी साहित्य में स्नात्कोत्तर की और तालीम भी इसी शहर से हासिल की ! ग़ज़लों-नज्मों-गीतों से बेहद लगाव रहा है ! इनके पसंदीदा शायर है गुलज़ार और उपन्यासकार अमृता प्रीतम है ! अमृता के उपन्यास ' नागमणि ' ने लिखने की ख्वाहिश पैदा की ! लिखने में इनकी कलम की रौशनाई ग़ज़ल, नज़्म, उपन्यास पर लफ्ज़ जडती है ! इनका पूरा नाम पूनम चन्द्रा है ! 'मनु ' इनका तखल्लुस है ! 2006 से कनाडा, ओंटारियो के ब्राम्पटन शहर में रह रही है ! यहाँ के ' हिंदी रायटर्स गिल्ड, कनाडा ' की सदस्य है और अपने ही आईटी- व्यवसाय से जुड़ी है ! इनकी जुबा में ' ज़ज्बात ' हर लम्हा खुद से हुई बात का जिक्र है,जो कहीं-न-कहीं पढने वाले के दिल की राह से होकर गुज़रता है ! लेकिन ये सिर्फ मनु जी के नहीं !हर एक इंसान के ज़ज्बात हैं ! आप पढोंगे तो शायद मेरी बात का समर्थन करेंगे  की ये ख़याल सिर्फ़ उनका ही नही हमारा भी हैं :-


वो ख़याल 
जो तेरी रह्गुज़र से हो कर गुज़रे 
बस वही 
' ज़ज्बात ' है !
* * *
राहों का ज़िक्र न हो तो 
अच्छा है 
मिलाती भी यही हैं 
और 
जुदा भी यही करती हैं 
एक शख्स की दो जुदा फ़ितरत
दिल को दुखाती हैं 
 कुछ अच्छा नहीं लगता !
* * *
मैंने इस तरह जिया है तुम्हें अपनी ज़िंदगी में 
की कभी तुम्हारी कमी महसूस ही नही हुई 
पर यकीन मानो 
बहुत कमी महसूस हुई है !
* * *
ज़िंदगी की किताब का वो पन्ना 
किसी का हो गया तो हो गया 
उसी पन्ने पर 
आप एक नई कहानी नहीं लिख सकते 
और वो पन्ना हमेशा मुड़ा रहता है !
* * *
          ' जज्बात ' ऐसे बेहतरीन खयालो से भरा पड़ा एक खज़ाना है ! लेकिन शर्त इतनी है इस ख्याल को पाने के लिए समंदर की गहराई में एक डूबकी लगानी होगी ! और आपको एसे मोती मिलेंगें कि आप मालामाल हो जायेंगे ! हर खयाल ऐसा हैं मानो ये हमारी ही कहानी  हों ! 

वो हर एक से दुआ लेता हैं  
सलाम करता हैं
सुना है वो आज कल अजनबियों से भी कलाम  करता हैं 
क्या मिल गया मुझे, उसे इतना जान के 
ख़ुदाया 
मैं उसके लिए अज़नबी क्यों नहीं !! 

           ' ज़ज्बात ' की कई प्रस्तुतियों में हम अपनी सोच को अभिव्यक्त होते पाते हैं ! हमे हैरत में डालने वाली बात तब होती है जब हम ऐसे अल्फाज़ को महसूस करते है जिसे हम व्यक्त नही कर सके !संपादक मुकेश मिश्र ने किताब में लिखा है- 'ज़ज्बात' में मनु जी ने एक निराले क़िस्म की शैली और शिल्प को तो .चुना ही- साथ ही अपने समय, काल, व्यक्ति और समाज के साझेपन को भी अभिव्यक्त किया है ! 'ज़ज्बात' की प्रस्तुतियां इस तथ्य का अनुभव कराती हैं की एक लेखक के रूप में मनु जी की आँखे कितनी चौकस है, और समय व् जीवन के अंधेरे-उजाले में एक साथ कितनी दूर तक देख सकती हैं और क्या खोज सकती है, और उनका अनुभव कितना व्यापक हैं ! उनकी प्रस्तुतियों की एक और विशेषता हैं- शब्दों में अर्थ जुटाने की और फिर उन अर्थों को खोलने की ! 'ज़ज्बात ' में मनु जी ने अपनी रचनात्मकता में असाधारण को खोजा है, और अपनी रचनात्मक सामर्थ्य द्वारा उसे प्रमाणित भी किया है !


          मनु जी के पसंदीदा शायर "गुलज़ार" है और यही कारण है की मनु जी के ख्यालो और ज़ज्बात में "गुलज़ार" का प्रभाव साफ-साफ दिखाय देता है ! वहीं गहराई  और ऊंचाई - नई सोच, बुलंद हौंसला !

मुहब्बत में 
वफ़ा का जिक्र क्यूँ लाते हो बार-बार 
ये उसने की हो या मैंने, क्या फ़र्क़ पड़ता है 
मतलब तो मुहब्बत से है, हाँ वो दोनों ने ही की थी 
मुझे याद हो वो भूल जाये, क्या फर्क पड़ता है 
* * *
पूरी तरह जीना कब का भुला दिया 
कुछ तुम में जिंदा हूँ 
कुछ खुँद में बाक़ी हूँ !

         लिजिये आपके लिए पेश है मनु जी की किताब ज़ज़्बात के लोकार्पण कार्यक्रम के कुछ अंश DD National से और रू-ब-रू होते है मनु जी से और उनकी आवाज़ से :- 


      

          इस किताब को पाने के लिए आपको ज्यादा तकलीफ़ नही उठानी पड़ेगी ! इस पुस्तक को ओन लाइन वेबसाइटो से खरीदा जा सकता है आप दी गइ लिंक पर क्लिक करे किताब से जुडी सारी जानकारी मिल जाएगी :-

          और फेसबुक वाले दोस्तों के लिए मनु जी से मिलने का लिंक :-

          साथ ही साथ जज़्बात का फेसबुक पेज के लिंक :-

          और अब आप यहाँ एक ग़ज़ल सुनिए :-              

                    जाते-जाते मनु  जी के अनमोल ख़याल के साथ आपको छोड़े जा रहा हूँ :-

 तेरा ज़िक्र आया 
और 
आँखों में आँसू आ गए 
तेरे एहसास में आज भी 
कितनी जुम्बिश है !
* * *
सारी चांदनी रात सिमटकर वहीं आ गयी 
जहाँ  तुम हो मेरे साथ मेरा चाँद बनकर 
कह दो इस जहाँ से आज बस चिरागों से ही काम चला ले !
* * *
ये जो दर्मियाँ एक फ़ासला रह गया था 
कहीं कुछ भी नहीं था 
इसीलिए बहुत ज्यादा रह गया था !
* * *
ख़्वाबों और ख्यालों पर 
उसकी सोच के जाले हैं 
अच्छा लगता है मुझे उसके नाम में .उलझकर 
बार-बार मरते रहना !
* * *
मुहब्बत में लफ्ज़ों का जिक्र ही क्यों हों 
मुहब्बत में क्या कभी,सब कुछ बयाँ हो पाया है 
हमेशा कहीं कुछ-न-कुछ छूट गया है 
और फिर 
पूरी तरह बयाँ हो जाये, ये ऐसी शय भी तो नहीं !
* * *
बुराइयों के नहीं 
यहाँ 
अच्छाइयों के सबूत देने पड़ते हैं !
* * *
( लिखने में गलती रही हो तो माफ़ी चाहता हूँ ! )