वो मुझे देख कर मुस्कुराता रहा
बाद मुद्दत के लौटा था वो गाँव में
सबको बचपन के किस्से सुनाता रहा
ओढ कर शाल बैठा था दालान में
कौन मेरी गज़ल गुनगुनाता रहा
मेरी यादों के जंगल में पागल हवा
बन के आया था वो सरसराता रहा
क्या खबर थी के आएँगी फिर आंधियाँ
मैं मुंडेरों पे दीपक जलाता रहा
आखिरश मौत उसको भी लेकर गयी
वो जो अपने को खुद रब बताता रहा
जिसने कांटे बिखेरे क़दम दर क़दम
उसकी राहों में मैं गुल बिछाता रहा
वो तो तकदीर में था किसी और की
मैं मुक़द्दर जहाँ आज़माता रहा
अपने इमाँ ' हयात ' हम बचाते रहे
गो जमाना हमें आजमाता रहा
* * * * *
* * *
बर्गद जला दिए कभी संदल जला दिए
हम ने तुम्हारी याद के जंगल जला दिए
धरती तरस रही है एक एक बूँद को
लगता है तेज धूप ने बादल जला दिए
बचपन को फूल बेंचते देखा है धूप में
क्या मुफलिसी ने मांओं के आँचल जला दिए
तुम तो ' हयात ' सब की ही बातों में आ गए
जो भी मिले थे प्यार के वो पल जला दिए
* * * * *
* * *
ख़बर ये हो गयी कैसे ख़ुदा जाने ज़माने को
के मैं बेचैन रहेता हूँ तेरे नज़दीक आने को
ज़मीनें हो अगर मशकूक तो रिश्ते नहीं उगते
भरोसा भी ज़रुरी है किसी का प्यार पाने को
दुपट्टा उसने ऊँगली पर लपेटा देर तक यूँ ही
न सुजा जब उसे कुछ भी नज़र मुझसे चुराने को
उसे भी थी ख़बर इसकी नहीं आसान यें इतना
मगर कहेता रहा मुझसे वो ख़ुदको भूल जाने को
बिछड़ते वक़्त बस सारे गिले शिकवे भुला देते
कहा था कब भला मैंने सितारे तोड़ लाने को
'हयात' आते फ़कत रस्मन दिलासे के लिए इक दिन
कोई आता नहीं हरगिज किसी के ग़म उठाने को
* * *
* * *
चाँद, सितारे, नदियाँ, सागर, धरती, अंबर महकेंगे
तुम आओ तो पतझड़ में भी गुल शाखों पर महकेंगे
संदल की खुश्बू का डेरा है अब तेरी जुल्फों में
गर बैठी जूडे में तेरे तितली के पर महकेंगे
ऐ हमराही जिन रास्तों से गुजरोगे तुम साथ मेरे
उन रास्तों के मौसम तो क्या, कंकड़, पत्थर महकेंगे
तुम रूठो तो फिर रूठेंगे झोंकें मस्त हवाओं के
तुम को छू कर आने वाले किसको छू कर महकेंगे
ख़्वाबों की इन देहलीज़ों पर आँखें दीप जलाती हैं
कब नींदों की बस्ती में फिर सपनो के घर महकेंगे
इक दिन तू बिछ्डेगा लेकिन मुझको ये लगता है 'हयात'
बरसों तक ये मेज़ ये कुर्सी, तकिया, चादर महकेंगे
* * *
* * *
बहारों के सभी खुशरंग मंज़र छोड़ आया हूँ
मैं अपने गाँव खुशिया भरा घर छोड़ आया हूँ
किया करते थे जिसकी छांव में पहरों तलक बातें
नदी के पार वो तन्हा सनोबर छोड़ आया हूँ
तुम्हारी राह से उठकर चला आया हूँ मैं लेकिन
वो रास्ता देखती आँखे वहीं पर छोड़ आया हूँ
मैं उस घर से उठा लाया हूँ सब यादें लड़कपन की
मगर मेहराब में बैठे कबूतर छोड़ आया हूँ
रिझाते हो मुझे तुम क्या दिखा कर प्यार के सपने
कहीं पीछे मैं चाहत का समन्दर छोड़ आया हूँ
अभी नादान है कैसे सम्भालेगा खुदा जाने
मैं इक दस्त-ए-हिनाई में मुकददर छोड़ आया हूँ
सफर में मुद्दतों से हूँ अभी भी दूर है मंज़िल
मैं पीछे अनगिनत मीलों के पत्थर छोड़ आया हूँ
'हयात' उसकी मुहब्बत के सभी तोहफे बहा आया
मैं इक तूफ़ान दरिया में जगा कर छोड़ आया हूँ
* * *
* * *
अपने पराये
सोचता हूँ तो याद आते है
वो दिन जब ख्वाब भी हकीकत बन गये थे जैसे
इज्ज़त, दौलत, शोहरत और बेशुमार महोबत भी
पर सबसे बढ़ कर अपनों का साथ
कितना अच्छा होता है ये अहेसास
जब हम अपने गिर्द महेसूस करते है
अपनों की महोब्बत और ख़ुलूस को….
मैं खुश किस्मत हूँ के मैंने महेसूस किया
मगर
ज़िन्दगी इतनी आसाँ नहीं है
ज़िन्दगी यश चोपरा की फिल्म जैसी नहीं है
जहा आख़िरी वक़्त में सब अच्छा हो जाता है…
इज्ज़त, दौलत, शोहरत और महोबत
कितना मुकम्मल लगता है ??
सिर्फ एक लफ्ज़ दौलत हटा दीजिये
फिर देखिये ज़िंदगी कितनी बेरहम हो सकती है
आज भी मैं देखता हु अपने उन अज़ीजों को
दूर खड़े हुए उल्जे लिबासो में
चहेरों पे ताज़गी और आँखों में चमक लिए
होंठों पे एक मुकम्मल मुस्कान सजाये
सब के सब जाने पहेचाने से लगते है…
मगर अपना कोई नहीं लगता …
* * *
* * *
मैं तेरी साँसों को अपनी सांसो से मेहकादूंगा
तुम फूलों सी हंसती रेहना मैं भंवरा बन जाऊंगा
उल्जे-उल्जे बिस्तर पर फिर रात की काली चादर में
उम्मीदों का सागर लेकर दो नैनों की गागर में
तुम नींदों की सेज सजाना मैं सपनो में आऊंगा
तुम फूलों सी हंसती रेहना मैं भंवरा बन जाऊंगा
कब से तकता हूँ मैं तुम को जाने कब से बेकल हूँ
तुम तो हो अंन बरसी बदरी मैं इक प्यासा मरुथल हूँ
जाने कब तुम बरसोगी मैं अपनी प्यास बुझाऊंगा
तुम फूलों सी हंसती रेहना मैं भंवरा बन जाऊंगा
मेरी ग़ज़लें, मेरी नज़्में, मेरे गीत अधूरे हैं
सोयी है पैरों में पायल सुर संगीत अधूरे है
इठलाती तुम चल कर आना जब मैं गीत सुनाऊंगा
तुम फूलों सी हंसती रेहना मैं भंवरा बन जाऊंगा
धीरे धीरे बाँध के मुझको चुपके चुपके चोरी से
खींच रही हो किन रास्तों पर तुम सपनो की डोरी से
नैनो के इन गलियारों में लगता है खो जाऊँगा
तुम फूलों सी हंसती रेहना मैं भंवरा बन जाऊंगा
रजनी गंधा महक रही है कब से घर के आँगन में
जीवन साथी तुम भी महेको आओ मेरे जीवन में
इंद्र धनुष के रंग चुरा के सूनी मांग सजाऊंगा
तुम फूलों सी हंसती रेहना मैं भंवरा बन जाऊंगा
* * *
शमीम हयात साहब का फेसबुक लिंक
Shameem Hayat
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कौन मेरी गज़ल गुनगुनाता रहा
मेरी यादों के जंगल में पागल हवा
बन के आया था वो सरसराता रहा
क्या खबर थी के आएँगी फिर आंधियाँ
मैं मुंडेरों पे दीपक जलाता रहा
आखिरश मौत उसको भी लेकर गयी
वो जो अपने को खुद रब बताता रहा
जिसने कांटे बिखेरे क़दम दर क़दम
उसकी राहों में मैं गुल बिछाता रहा
वो तो तकदीर में था किसी और की
मैं मुक़द्दर जहाँ आज़माता रहा
अपने इमाँ ' हयात ' हम बचाते रहे
गो जमाना हमें आजमाता रहा
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बर्गद जला दिए कभी संदल जला दिए
हम ने तुम्हारी याद के जंगल जला दिए
धरती तरस रही है एक एक बूँद को
लगता है तेज धूप ने बादल जला दिए
बचपन को फूल बेंचते देखा है धूप में
क्या मुफलिसी ने मांओं के आँचल जला दिए
तुम तो ' हयात ' सब की ही बातों में आ गए
जो भी मिले थे प्यार के वो पल जला दिए
* * * * *
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ख़बर ये हो गयी कैसे ख़ुदा जाने ज़माने को
के मैं बेचैन रहेता हूँ तेरे नज़दीक आने को
ज़मीनें हो अगर मशकूक तो रिश्ते नहीं उगते
भरोसा भी ज़रुरी है किसी का प्यार पाने को
दुपट्टा उसने ऊँगली पर लपेटा देर तक यूँ ही
न सुजा जब उसे कुछ भी नज़र मुझसे चुराने को
उसे भी थी ख़बर इसकी नहीं आसान यें इतना
मगर कहेता रहा मुझसे वो ख़ुदको भूल जाने को
बिछड़ते वक़्त बस सारे गिले शिकवे भुला देते
कहा था कब भला मैंने सितारे तोड़ लाने को
'हयात' आते फ़कत रस्मन दिलासे के लिए इक दिन
कोई आता नहीं हरगिज किसी के ग़म उठाने को
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चाँद, सितारे, नदियाँ, सागर, धरती, अंबर महकेंगे
तुम आओ तो पतझड़ में भी गुल शाखों पर महकेंगे
संदल की खुश्बू का डेरा है अब तेरी जुल्फों में
गर बैठी जूडे में तेरे तितली के पर महकेंगे
ऐ हमराही जिन रास्तों से गुजरोगे तुम साथ मेरे
उन रास्तों के मौसम तो क्या, कंकड़, पत्थर महकेंगे
तुम रूठो तो फिर रूठेंगे झोंकें मस्त हवाओं के
तुम को छू कर आने वाले किसको छू कर महकेंगे
ख़्वाबों की इन देहलीज़ों पर आँखें दीप जलाती हैं
कब नींदों की बस्ती में फिर सपनो के घर महकेंगे
इक दिन तू बिछ्डेगा लेकिन मुझको ये लगता है 'हयात'
बरसों तक ये मेज़ ये कुर्सी, तकिया, चादर महकेंगे
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बहारों के सभी खुशरंग मंज़र छोड़ आया हूँ
मैं अपने गाँव खुशिया भरा घर छोड़ आया हूँ
किया करते थे जिसकी छांव में पहरों तलक बातें
नदी के पार वो तन्हा सनोबर छोड़ आया हूँ
तुम्हारी राह से उठकर चला आया हूँ मैं लेकिन
वो रास्ता देखती आँखे वहीं पर छोड़ आया हूँ
मैं उस घर से उठा लाया हूँ सब यादें लड़कपन की
मगर मेहराब में बैठे कबूतर छोड़ आया हूँ
रिझाते हो मुझे तुम क्या दिखा कर प्यार के सपने
कहीं पीछे मैं चाहत का समन्दर छोड़ आया हूँ
अभी नादान है कैसे सम्भालेगा खुदा जाने
मैं इक दस्त-ए-हिनाई में मुकददर छोड़ आया हूँ
सफर में मुद्दतों से हूँ अभी भी दूर है मंज़िल
मैं पीछे अनगिनत मीलों के पत्थर छोड़ आया हूँ
'हयात' उसकी मुहब्बत के सभी तोहफे बहा आया
मैं इक तूफ़ान दरिया में जगा कर छोड़ आया हूँ
* * *
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अपने पराये
सोचता हूँ तो याद आते है
वो दिन जब ख्वाब भी हकीकत बन गये थे जैसे
इज्ज़त, दौलत, शोहरत और बेशुमार महोबत भी
पर सबसे बढ़ कर अपनों का साथ
कितना अच्छा होता है ये अहेसास
जब हम अपने गिर्द महेसूस करते है
अपनों की महोब्बत और ख़ुलूस को….
मैं खुश किस्मत हूँ के मैंने महेसूस किया
मगर
ज़िन्दगी इतनी आसाँ नहीं है
ज़िन्दगी यश चोपरा की फिल्म जैसी नहीं है
जहा आख़िरी वक़्त में सब अच्छा हो जाता है…
इज्ज़त, दौलत, शोहरत और महोबत
कितना मुकम्मल लगता है ??
सिर्फ एक लफ्ज़ दौलत हटा दीजिये
फिर देखिये ज़िंदगी कितनी बेरहम हो सकती है
आज भी मैं देखता हु अपने उन अज़ीजों को
दूर खड़े हुए उल्जे लिबासो में
चहेरों पे ताज़गी और आँखों में चमक लिए
होंठों पे एक मुकम्मल मुस्कान सजाये
सब के सब जाने पहेचाने से लगते है…
मगर अपना कोई नहीं लगता …
* * *
* * *
मैं तेरी साँसों को अपनी सांसो से मेहकादूंगा
तुम फूलों सी हंसती रेहना मैं भंवरा बन जाऊंगा
उल्जे-उल्जे बिस्तर पर फिर रात की काली चादर में
उम्मीदों का सागर लेकर दो नैनों की गागर में
तुम नींदों की सेज सजाना मैं सपनो में आऊंगा
तुम फूलों सी हंसती रेहना मैं भंवरा बन जाऊंगा
कब से तकता हूँ मैं तुम को जाने कब से बेकल हूँ
तुम तो हो अंन बरसी बदरी मैं इक प्यासा मरुथल हूँ
जाने कब तुम बरसोगी मैं अपनी प्यास बुझाऊंगा
तुम फूलों सी हंसती रेहना मैं भंवरा बन जाऊंगा
मेरी ग़ज़लें, मेरी नज़्में, मेरे गीत अधूरे हैं
सोयी है पैरों में पायल सुर संगीत अधूरे है
इठलाती तुम चल कर आना जब मैं गीत सुनाऊंगा
तुम फूलों सी हंसती रेहना मैं भंवरा बन जाऊंगा
धीरे धीरे बाँध के मुझको चुपके चुपके चोरी से
खींच रही हो किन रास्तों पर तुम सपनो की डोरी से
नैनो के इन गलियारों में लगता है खो जाऊँगा
तुम फूलों सी हंसती रेहना मैं भंवरा बन जाऊंगा
रजनी गंधा महक रही है कब से घर के आँगन में
जीवन साथी तुम भी महेको आओ मेरे जीवन में
इंद्र धनुष के रंग चुरा के सूनी मांग सजाऊंगा
तुम फूलों सी हंसती रेहना मैं भंवरा बन जाऊंगा
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शमीम हयात साहब का फेसबुक लिंक
Shameem Hayat
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प्यार,महोब्बत ,बिछोड़े की दस्स्तान ...माँ के आँचल का स्नेह ....गुजरी यादों के लम्हे ...सब कुछ समोया है इन प्यारी ग़ज़लों में ..शमीम हयात साहब को बहुत-बहुत मुबारक और आप का बहुत-बहुत शुक्रिया .......
ReplyDeletebahut bahut shukriyaa
DeleteBahut bahut nawazish aapki Ashok saluja sahab
Deleteलोहड़ी की हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल सोमवार (13-04-2015) को "विश्व युवा लेखक प्रोत्साहन दिवस" {चर्चा - 1946} पर भी होगी!
ReplyDelete--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
bahut bahut shukriyaa
DeleteWah wah behtreen kya kahne
ReplyDeleteThank you
DeleteShukriya aapka Harish Prathwani sahab
Deleteजिसने कांटे बिखेरे क़दम दर क़दम
ReplyDeleteउसकी राहों में मैं गुल बिछाता रहा ...
शमीम जी की गजलों ने समा बाँध दिया ... हर ग़ज़ल लाजवाब ..
bahut bahut shukriyaa
Deleteलाजवाब प्रस्तुति ...
ReplyDelete