सिराज फ़ैसल खान
माना मुझको दार पे लाया जा सकता है
लेकिन मुर्दा शहर जगाया जा सकता है
लिक्खा हैं तारीख़ सफ़हे सफ़हे पर ये
शाहों को भी दास बनाया जा सकता है
चाँद जो रूठा राते काली हो सकती है
सूरज रूठ गया तो साया जा सकता है
शायद अगली इक कोशिश तक़दीर बदल दें
ज़हर तो जब जी चाहें खाया जा सकता है
कब तक धोखा दे सकते है आईने को
कब तक चेहरे को चमकाया जा सकता है
पाप सभी कुटिया के भीतर हो सकते है
हुजरे के अंदर सब खाया जा सकता है
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वो बड़े बनते हैं अपने नाम से
हम बड़े बनते है अपने काम से
वो कभी आगाज़ कर सकहते नहीं
ख़ौफ़ लगता है जिन्हे अंज़ाम से
इक नजर महफ़िल में देखा था जिसे
हम तो खोये है उसी मे शाम से
दोस्ती, चाहत, वफ़ा इस दौर में
काम रख ऐ दोस्त अपने काम से
जिनसे कोई वास्ता तक है नहीं
क्यों वो जलते है हमारे नाम से
उसके दिल की आग ठंडी पड गयी
मुझको शोहरत मिल गयी इल्ज़ाम से
महफ़िलों में ज़िक्र मत करना मेरा
आग लग जाती है मेरे नाम से
यहाँ तक आ गयी तन्हाई मेरी
सदा देने लगी परछाई मेरी
में हर शै में उसीको देखता हूँ
परीशाँ हैं बहुत बिनाई मेरी
तअल्लुक तर्क़ होते ही अचानक
बुराई बन गयी, अच्छाई मेरी
बिछड़ते वक़्त ये लब सिल गए थे
जुबां पर जम गयी थी काई,मेरी
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नज़्म - तख्लीक़
मेरे शायर
ग़ज़ल सुनाओ
जो अनसुनी हो
जो अनकही हो
कि जिसके एहसास
अनछुए हों,
हों शेर ऐसे
कि पहले मिसरे को
सुन के
मन में
खिले तजस्सुस
का फूल ऐसा
मिसाल जिसकी
अदब में सारे
कहीं भी ना हो.......
में उससे कहता था
मेरी जानां
ग़ज़ल तो कोई ये कह चुका है,
ये मोजज़ा तो
खुदा ने मेरे
दुआ से
पहले ही कर दिया,
तमाम आलम की
सबसे प्यारी
जो अनकही सी
जो अनसुनी सी
जो अनछुई सी
हसीं ग़ज़ल है--
"वो मेरे पहलू में
जलवागर है....... !!!"
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नज़्म - Nostalgia
वो जब नाराज़ होती थी
तो अपने गार्डन
में जा के मुझको
फ़ोन
करती थी
सताने के लिए मुझको
वो कहती थी
बहुत बनने लगे हो तुम
मज़ा तुमको चखाऊंगी
तुम्हारी वो जो गुडिया है मेरे अंदर
मैं उसकी
उंगलियों में सैकड़ो कांटे
चुभाऊंगी
रुलाऊँगी
मैं कहता था
अगर तुमने
मेरी प्यारी सी गुड़िया को
रुलाया तो
कसम से मैं
तुम्हारा वो जो बाबू है
मेरे अंदर
मैं उसकी
जान ले लूंगा....... !!!
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नज़्म - मोबाइल फ़ोन
वो मोबाइल तुम्हारा था
मेरी जानां
कि जिसकी CONTACT BOOK में
मुझे हर दिन
नया इक नाम मिलता था
कभी बाबू
कभी शोना
कभी बुद्धू
कभी पागल
वो मोबाइल तुम्हारा था
मेरी जानां
कि जिसके खूबसूरत से कवर पे
फ़ोन के पीछे
तुम्हारे और मेरे नाम के
पहले वो दो अक्षर
चमकते मुस्कुराते थे
तुम्हारे फ़ोन पर अक्सर
मेरी तस्वीर
बन के वॉलपेपर
मुस्कुराती थी
मेरी हर कॉल की जिसमे
RECORDING SAVE रहती थी
मेरी आवाज़ को तुमने,
तुम्हारे फ़ोन की रिंगटोन पे
सेट कर के रक्खा था
कोई भी CALL आती थी
तो तुम हर CALL से पहले
मेरी आवाज़ सुनती थी
अब इक मुद्दत से कुछ रिश्ता नहीं
उस से फ़ोन से मेरा
मेरी जानां......
ना उससे कॉल आती हैं
ना उसपे कॉल जाती है .........!!!!
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नज़्म - PERFUME
तेरे परफ्यूम की खुशबू
मेरी जानांं
हमारे वस्ल पर पहले,
गले लगने से
मेरे फेवरेट
स्वेटर पे
मेरे साथ आई थी
ये तेरे प्यार की
तन पे मेरे
पहली निशानी थी
जिसे अब तक
हिफ़ाज़त सी
मेरी सारी
मुहब्ब्त से
सजा के मैंने रक्खा है
ये खुशबू छूट ना जाए
इसी दर से
दोबारा
मैंने उस स्वेटर को
पहना है
ना धोया है......... !!!
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