एक ख़ुशबू टहलती रही : मोनिका हठीला
मै और मेरे दोस्त ' जोगी जसदनवाला ' इस साल की शरूआत में भूज दोस्त अजीत परमार ' आतूर ' से मिलने गये थे ! दुसरे दिन आतूर के घर शाम को भुज के गुजराती शायरो की महेफ़ील सजी,गुजराती शायरों के बीच एक बिलकुल अलग अंदाज़ से एक कव्यत्री ने तरन्नुम में अपने गीत,गज़ल गाना शरू किया और छा गयी ! ये कवयत्री थी हिन्दी काव्य मंच की मशहूर कवयत्री 'मोनिका हठीला' !लोट्ते वक़्त आतुर से कूछ किताबें ली कूछ किताबें दी। उन किताबों में एक किताब जो शामिल थी वो थी हिन्दी की मशहूर कवयत्री ' मोनिका हठीला ' का काव्य संग्रह '' एक ख़ुशबू टहलती रही '' !!
एक ख़ुशबू टहलती रही रात भर
जूल्फ़ खूलकर मचलती रही रात भर
गीत ग़ज़लों ने दिल को सहारा दिया
याद करवट बदलती रही रात भर
इस काव्य संग्रह का नाम एक ख़ुशबू टहलती रही रखे जाने के पीछे का एक कारण ये भी है कि ये मोनिका का एक प्रसिध्द मुक्तक भी है !और हिंदी गीतों के पुरोधा कवि दादा गोपाल दस नीरज ने इसे मुक्तक सुनकर मोनिका के सर पर हाथ रख कर अपना स्नेहिल आशिष दिया था !ये सारी बाते आसमान को छूने जैसी ही तो है !
तो आतुर के कारण मुझे मोनिका जी से मिलने का मोका मिला परन्तु एक कवि या कवयत्री की पहचान तो उनके शब्दों से ही होती है! भावनाए नई नही होती आदिकाल से मानव मन की संवेदनाये और भावनाए बदली नही है और न बदलेगी ! बदलता है तो केवल उन्हें शब्दों में पिरोने का कौशल, लक्षना और व्यंजना का श्रुंगार और अपनी बात को नये ढंग से कहने की कला ! मोनिका हठीला की रचनाओं में यह कौशल भली भाँति उभर कर आया है!सहज सीधे सादे शब्दों में बिना किसी आडम्बर के अपनी बात कह पाने का जो हूनर उनकी रचनाओ में दिखाय देता है वहाँ तक पहोंचने में कड़ी साधना की जरुरत होती है! अपने गित में लेखन का ज़िक्र करते हुवे कहती है-
घिर आई, रंग भरी शाम !
एक गीत और तेरे नाम !!
कलियों के मधुबन से गीतों के छंद चुने !
सिन्दूरी क्षितिजो से सपनों के तार बुने !
सपनों का तार तार वृन्दावन धाम !!
एक गीत और तेरे नाम !!
खोज रही बिम्ब एक सुधियों के दर्पण में !
थिरक रहा पल-पल जो एस दिल के आँगन में !
आँगन में कर ले जो पल भर विश्राम !!
एक गीत और तेरे नाम !!
ढूँढ -ढूँढ कर हारी दिन तलाशते बीता !
जीवन घट बूँद-बूँद रिसते-रिसते रीता !
रीत-रीत कर राधा बन बैठी श्याम !!
एक गीत और तेरे नाम !!
और तुम्हारे नाम नाम लिखते लिखते जब यह कलम अपने आसपास देखती है तो व्यवस्था की अस्तव्यस्तता और टूटते हुए सपनों के ढेरों से जुड़े हुए राजनीती से अछुती नहीं रह पाती वे एक शेर में लिखती है -
सारे कौए ओढ के चादर आज बन गये बगुले
अंधियारे ने रहन रख लिया आज उजाला है.
मुझे मोनिका जी की और एक ग़ज़ल इस क़िताब से याद आती है! जब दिल्ली का रेप केस जहन में आता है इस हादसे पर कई शायरो ने कविओ ने बहोत कूछ लिख्खा है पर मोनिकाजी ने जो कहा वो पिडा सिर्फ कवि की नही पर मां-बाप की है वो गज़ल उनकी आवाज़ में सुनने का अपना मजा है वो ग़ज़ल है-
उसकी मुट्ठी में जान होती है
जिसकी बेटी जवान होती है
हाँक दो जिस तरफ़,चली जाएँ
बेटियाँ बेजूबान होती है
जैसा चाहे जुका लो इनको तुम
बेटीयां तो कमान होती है
बेटे होते है पहाड़ के जेसे
बेटियाँ आसमान होती है
मोतियों सा संभाल कर रखना
बेटीयां घर की शान होती है
कूल मिला कर इस काव्य संग्रह में सब कूछ है गित,ग़ज़ल,छंद-मुक्तक,मौसम के गीत,होली गीत लेकिन मोनिका न केवल गीतों को अपने शब्दों से सजाती है बल्कि गज़ले भी वो सजाती है!छोटी बहर हो या लम्बी,मोनिका ने अपनी बात अपने ही अंदाज़ में बया की है!उनकी ग़ज़लों के चंद अशआर पढ़े बिना यह ज़िक्र अधूरा रह जायेगा! कूछ शेर खांस -
सुबह रोती मिली चाँदनी
रात जिससे सुहानी हुई
* * * * *
मैने जाना जबसे तुमको
खुद से ही अंजान हो गई
* * *
आप के हुक्म पर होंठ सी तो लिये
गीत पायल लुटाये तो मै क्या करूं
* * * * *
हर कोई पूछता है मुझसे उदासी का सबब
कैसे बतलाऊ जमाने को कि क्या बात हुई
* * * * *
इतने सारे रंगो में कोई भी नही सजता
उन हसीन यादो के रंग इतने गहरे हैं
* * * * *
राह कांटो भरी हैं कुछ ग़म नहीं
आप है हम सफ़र,और क्या चाहिए
* * *
कैसे बतलाऊ जमाने को कि क्या बात हुई
* * * * *
इतने सारे रंगो में कोई भी नही सजता
उन हसीन यादो के रंग इतने गहरे हैं
* * * * *
राह कांटो भरी हैं कुछ ग़म नहीं
आप है हम सफ़र,और क्या चाहिए
* * *
इस काव्य संग्रह के अनुक्रम में 1२ गीत, मौसम के गीत-दोहे ७, २० ग़ज़ल,होली के गीत ८ और बाकी छन्द और मुक्तक है!किताब का मूल्य है- 250 ! इस किताब को पाने का आसन तरीका अगर कोई है तो वो जरिया है अजित परमार आतुर! आतुर का मो. नं.09825236840.! क्यू की मोनिका जी आज कल भुज (गुजरात) में है ! आतुर से बात कर के इस किताब को मंगवाया जा सकता है !
एक और तरीका है किताब पाने का जो किताब में लिख्खा है -
एक और तरीका है किताब पाने का जो किताब में लिख्खा है -
मोनिका हठीला ( भोजक )
द्वारा श्री प्रशांत भोजक
मकान नं बी- 164
आर. टी. ओ. रिलोकेशन साईट
भुज,कच्छ ( गुजरात )
संपर्क : 098258 51121
और
प्रकाशक : शिवना प्रकाशक
और
प्रकाशक : शिवना प्रकाशक
पि.सी. लैब, सम्राट कोम्प्लेक्स बेसमेंट
बस स्टेंड, सीहोर - 466001 ( म. प्र. )
मोनिकाजी के बारे में बताऊ तो सीहोर म. प्र. में जन्मी है और अपने पति प्रशांतजी के साथ भुज में है ! मोनिकाजी के पिता श्री रमेश हठीला भी जाने मने कवि है! गुरु है श्री नारायण कासट जी!आप से बीदा लेते लेते बता दु मोनिकाजी प्रसिध्ध साहित्यिक संस्था शिवना से जुड़ी हुई है और वही पर सीखी है ! और हाँ अगर आप कही मुशायरे,कवि संमेलन का आयोजन कर रहे है तो मेरी दरखास्त है आपसे जरुर मोनिकाजी को याद करना ! कुमार विश्वास के साथ भी वे अक्सर मुशायरे में दिखाय देती है ! जाते जाते उनका एक वीडियो -
मोनिका की जी काव्य संमेलन में
( ईस पोस्ट लिखने में मुझसे कोई ग़लती हुवी हो तो आप सब की क्षमा चाहता हूँ )
बहुत बढ़िया सुंदर समीक्षा ,,,आभार अशोक जी,,,
ReplyDeleteRecent Post : अमन के लिए.
sr aapka bhot bhot shukhriya ......me koi shayr ya vivechk to nhi hu pr aapse hi sikh rha hu....aap sda aashirvad dete rhena...shukhriya
Deleteaapka bhehad shukhr gujar hu.......aap hme sda margdarshn dete rhe....is kimuje bhot jrurt hai...aabhar, dhanyvad....
ReplyDeleteashok ji bahut behtareen panktiyon ko padhne ka awsar aapne diya. aapka lekhan evam prastuti bhi lajawab hai. aap jo kaam kar rahe hai, uske liye aapko bahut badhai deta hun..
ReplyDeletebhai aapka bhot bhot shukhriya.....yuhi pyar ka nata bnaye rakhiyega
Deletevah ... adbhoot !!
ReplyDeletekhub khub aabhar
Deleteलाजवाब समीक्षा ... पढ़ी है किताब मैंने ओर आपकी समीक्षा के अनुरूप ही है ...
ReplyDeletebhot bhot shukhr guzar hu aapka
Deleteबहुत खूब, लाजबाब !
ReplyDeletebhot bhot shukhriya aapka
Deleteलाजवाब समीक्षा ...अशोक जी
ReplyDeletethank you
Deleteमोनिका जी से आपकी समीक्षा के द्वारा यह परिचय अच्छा लगा ! आभार आपका !
ReplyDeleteaapka shukhrira mem
Deleteबहुत बढ़िया समीक्षा अशोक जी.....
ReplyDeleteमोनिका जी की रचनात्मकता बेहद प्रभावशाली और कोमल है...
आभार आपका.
अनु
thank you thank you
Deleteसार्थक समीक्षा
ReplyDeleteबधाई
आग्रह है अशोक भाई मेरे ब्लॉग मैं सम्मलित हों
are jrur sr.ae mera sobhagy hoga.thank you
ReplyDeletedhardar samiksha ,behatareen prastuiti,kabile tarif ,badhayee sweekar kare
ReplyDeletebhot bhot shukhriya sr
ReplyDeleteअच्छी कविता,अच्छे शे'र और अच्छा परिचय कराने के लिए ....
ReplyDeleteआभार आपका !
thank you sr
Deletebehatareen andaz me khooshurat prastuti
ReplyDeleteशुभ संध्या
ReplyDeleteइस ब्लाग - एक की कॉपी मैं डिलिट कर बैठी
कृपया मेल करें
सादर
ji jurur mrm
ReplyDeletemai aao logo ke sath aate aate n aa ska aaj aafsos ho rha hai
ReplyDeletethank you
Deleteसम्यक समीक्षा... बहुत बढ़िया!
ReplyDeletethank you
Deletelajwaab gazal padhti hain ....
ReplyDeleteशुख्रिया
Deleteआप बहुत ही शानदार ब्लाँग विकसित कर रहे हैं. शेरो-शायरी की दुनिया में आपकी गहरी पैठ है. क्या ही अच्छा होता यदि आप इंटरनेट की दुनिया में शेरो-शायरी और अन्य काव्य विधाओं की समीक्षा और आलोचना विकसित करते. मैं आपसे अब अपने ब्लाग पर औपचारिक टिप्पणियों की नहीं बल्कि अपनी ग़ज़लों की एक्स-रे रिपोर्ट की उम्मीद करूंगा.
ReplyDeleteआपका शुख्रिया , आज-कल नेट स्पीड इतनी धीमी है में कुछ कर नही पाता आगे ऐसा ही होगा
Deleteबहुत खूब ....
ReplyDeleteलाजवाब सार्थक समीक्षा !
आपका शुख्रिया
Deleteसारे कौए ओढ के चादर आज बन गये बगुले
ReplyDeleteअंधियारे ने रहन रख लिया आज उजाला है.
लाजवाब समीक्षा , बहुत अच्छी पंक्तिया पढने को मिली
आपका शुख्रिया
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