किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
मैं घर में सबसे छोटा था मेरी हिस्से में माँ आई
- मुनव्वर राना
- मुनव्वर राना
लिपट जाता हूँ माँ
से और मौसी मुस्कुराती है
मैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूँ हिन्दी मुस्कुराती है
उछलते खेलते बचपन में बेटा ढूँढती होगी
तभी तो देख कर पोते को दादी मुस्कुराती है
तभी जा कर कहीं माँ-बाप को कुछ चैन पड़ता है
कि जब ससुराल से घर आ के बेटी मुस्कुराती है
चमन में सुबह का मंज़र बड़ा दिलचस्प होता है
कली जब सो के उठती है तो तितली मुस्कुराती है
हमें ऐ ज़िन्दगी तुझ पर हमेशा रश्क आता है
मसायल से घिरी रहती है फिर भी मुस्कुराती है
बड़ा गहरा तअल्लुक़ है सियासत से तबाही का
कोई भी शहर जलता है तो दिल्ली मुस्कुराती है.
मैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूँ हिन्दी मुस्कुराती है
उछलते खेलते बचपन में बेटा ढूँढती होगी
तभी तो देख कर पोते को दादी मुस्कुराती है
तभी जा कर कहीं माँ-बाप को कुछ चैन पड़ता है
कि जब ससुराल से घर आ के बेटी मुस्कुराती है
चमन में सुबह का मंज़र बड़ा दिलचस्प होता है
कली जब सो के उठती है तो तितली मुस्कुराती है
हमें ऐ ज़िन्दगी तुझ पर हमेशा रश्क आता है
मसायल से घिरी रहती है फिर भी मुस्कुराती है
बड़ा गहरा तअल्लुक़ है सियासत से तबाही का
कोई भी शहर जलता है तो दिल्ली मुस्कुराती है.
मुहब्बत करने
वालों में ये झगड़ा डाल देती है
सियासत दोस्ती की जड़ में मट्ठा डाल देती है
तवायफ़ की तरह अपने ग़लत कामों के चेहरे पर
हुकूमत मंदिरों-मस्जिद का पर्दा डाल देती है
हुकूमत मुँह-भराई के हुनर से ख़ूब वाक़िफ़ है
ये हर कुत्ते आगे शाही टुकड़ा डाल देती है
कहाँ की हिजरतें कैसा सफ़र कैसा जुदा होना
किसी की चाह पैरों में दुपट्टा डाल देती है
ये चिड़िया भी मेरी बेटी से कितनी मिलती-जुलती है
कहीं भी शाख़े-गुल देखे तो झूला डाल देती है
भटकती है हवस दिन-रात सोने की दुकानों में
ग़रीबी कान छिदवाती है तिनका डाल देती है
हसद की आग में जलती है सारी रात वह औरत
मगर सौतन के आगे अपना जूठा डाल देती है
सियासत दोस्ती की जड़ में मट्ठा डाल देती है
तवायफ़ की तरह अपने ग़लत कामों के चेहरे पर
हुकूमत मंदिरों-मस्जिद का पर्दा डाल देती है
हुकूमत मुँह-भराई के हुनर से ख़ूब वाक़िफ़ है
ये हर कुत्ते आगे शाही टुकड़ा डाल देती है
कहाँ की हिजरतें कैसा सफ़र कैसा जुदा होना
किसी की चाह पैरों में दुपट्टा डाल देती है
ये चिड़िया भी मेरी बेटी से कितनी मिलती-जुलती है
कहीं भी शाख़े-गुल देखे तो झूला डाल देती है
भटकती है हवस दिन-रात सोने की दुकानों में
ग़रीबी कान छिदवाती है तिनका डाल देती है
हसद की आग में जलती है सारी रात वह औरत
मगर सौतन के आगे अपना जूठा डाल देती है
सबके कहने से इरादा नहीं बदला जाता
हर सहेली से दुपट्टा नहीं बदला जाता
हम कि शायर हैं सियासत नहीं आती हमको
हमसे मँह देख के लहजा नहीं बदला जाता
हम फ़क़ीरों को फ़क़ीरी का नशा रहता है
वरना क्या शहर में शजरा नहीं बदला जाता
ऐसा लगता है कि वो भूल गया है हमको
अब कभी खिड़की का पर्दा नहीं बदला जाता
अब रुलाया है तो हँसने पे न मजबूर करो
रोज़ बीमार का नुस्ख़ा नहीं बदला जाता
ग़म से फ़ुर्सत ही कहाँ है कि तुझे याद करूँ
इतनी लाशें हों तो काँधा नहीं बदला जाता
उम्र इक तल्ख़ हक़ीक़त है ‘मुनव्वर’ फिर भी
जितने तुम बदले हो उतना नहीं बदला जाता.
हर सहेली से दुपट्टा नहीं बदला जाता
हम कि शायर हैं सियासत नहीं आती हमको
हमसे मँह देख के लहजा नहीं बदला जाता
हम फ़क़ीरों को फ़क़ीरी का नशा रहता है
वरना क्या शहर में शजरा नहीं बदला जाता
ऐसा लगता है कि वो भूल गया है हमको
अब कभी खिड़की का पर्दा नहीं बदला जाता
अब रुलाया है तो हँसने पे न मजबूर करो
रोज़ बीमार का नुस्ख़ा नहीं बदला जाता
ग़म से फ़ुर्सत ही कहाँ है कि तुझे याद करूँ
इतनी लाशें हों तो काँधा नहीं बदला जाता
उम्र इक तल्ख़ हक़ीक़त है ‘मुनव्वर’ फिर भी
जितने तुम बदले हो उतना नहीं बदला जाता.
- मुनव्वर राना
अशोक जी,,,,
ReplyDeleteआप भी मेरे ब्लॉग को फालो करे मुझे हार्दिक खुशी होगी,,आभार
Recent Post : अमन के लिए.
ji jurur sr muje bhi khushi hogi
Deleteमुनव्वर साहब को रूबरू सुना है .. शेरों में जान डाल देते हैं वो ...
ReplyDeletewaaaaaah sr unka aandaze bya bhi lazvab hai
Deleteबहुत पसन्द आया
ReplyDeleteहमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
mafi magne ki koi jarurt nhi hai rs aapko pasand aaya ye mere liye kafi hai...shukhriya
Deleteखुबसुरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबेहतरीन गजल
पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
हार्दिक शुभकामनायें
bhot shukhriya
Deletebhot khub
ReplyDeletevery nice blog ...बहुत सुन्दर प्रस्तुति . .आभार . ''शादी करके फंस गया यार ,...अच्छा खासा था कुंवारा .'' साथ ही जानिए संपत्ति के अधिकार का इतिहास संपत्ति का अधिकार -3महिलाओं के लिए अनोखी शुरुआत आज ही जुड़ेंWOMAN ABOUT MAN
ReplyDeletethank you
Deletesunder prastuti. ise padhakar mere ander ka shayer machal utha.
ReplyDeletethank you
DeleteBhut hi shandar,ashok ji,bhut sundar .
ReplyDeleteshukriyaa
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