Saturday, 6 July 2013

हुमैरा राहत की ग़ज़लें

हुमैरा राहत 




फ़साना अब कोई अंजाम पाना चाहता है
तअल्लुक टूटने को इक बहाना चाहता है

जहाँ इक शख्स भी मिलता नहीं है चाहने से
वहाँ ये दिल हथेली पर ज़माना चाहता है

मुझे समजा रही है आँख की तहरीर उस की
वो आधे रास्ते से लौट जाना चाहता है

ये लाज़िम है कि आँखे दान कर दे इश्क को वो
जो अपने ख़्वाब की ताबीर पाना चाहता है

बहुत उकता गया है बे-सुकूनी से वो अपनी
समंदर झील के नजदीक आना चाहता है

वो मुझ को आजमाता ही रहा है जिंदगी भर
मगर ये दिल अब उस को आज़माना चाहता है

उसे भी ज़िन्दगी करनी पड़ेगी 'मीर' जेसी
सुखन से गर कोई रिश्ता निभाना चाहता है
* * *
वक़्त ऐसा कोई तुझ पर आए
ख़ुश्क आँखों में समंदर आए

मेरे आँगन में नहीं थी बेरी
फिर भी हर सम्त से पथ्थर आए

रास्ता देख न गोरी उसका
कब कोई शहर में जा कर आए

ज़िक्र सुनती हूँ उजाले का बहुत
उस से कहना कि मिरे घर आए

नाम ले जब भी वफ़ा का कोई
जाने क्यूँ आँख मिरी भर आए
* * * 
हर एक ख़्वाब की ताबीर थोड़ी होती है
मोहब्बतों की ये तक़दीर थोड़ी होती है

कभी कभी तो जुदा बे-सबब भी होते है

सदा ज़माने की तकसीर थोड़ी होती है

पलक पे ठहरे हुए अश्क से कहा मै ने

हर एक दर्द की तशहीर थोड़ी होती है

सफ़र ये करते है इक दिल से दुसरे दिल तक

दुखों के पाँव में ज़ंजीर थोड़ी होती है

दुआ को हाथ उठाओ तो ध्यान में रखना 

हर एक लफ़्ज़ में तासीर थोड़ी होती है
* * *
किसी भी राएगानी से बड़ा है
ये दुःख तो ज़िंदगानी से बड़ा है

न हम से इश्क़ का मफ़हूम पूछो
ये लफ़्ज़ अपने मआनी से बड़ा है

हमारी आँख का ये एक आँसू
तुम्हारी राजधानी से बड़ा है

गुज़र जायेगी सारी रात इस में
मिरा कीस्सा कहानी से बड़ा है

तिरा ख़ामोश सा इज़हार 'राहत'
किसी की लन-तरानी से बड़ा है

- हुमैरा राहत 

37 comments:

  1. बेहतरीन ग़ज़लें
    आभार

    सादर

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  2. उम्दा गजले , आभार

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  3. इतनी मुकम्‍मल ग़ज़लें ब्‍लॉग के माध्‍यम से पहुँचाने के लिये हार्दिक धन्‍यवाद।

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (07-07-2013) को <a href="http://charchamanch.blogspot.in/“ मँहगाई की बीन पे , नाच रहे हैं साँप” (चर्चा मंच-अंकः1299) <a href=" पर भी होगी!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. वाह !!! बहुत उम्दा लाजबाब गजल साझा करने के लिए आभार,,

    RECENT POST: गुजारिश,

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  6. वाह!
    बहुत उकता गया है बे-सुकूनी से वो अपनी
    समंदर झील के नजदीक आना चाहता है

    शुक्रिया अशोक भाई .......

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  7. बे-मिसाल गज़ल पढ़वाने के लिए आभार
    हार्दिक शुभकामनायें
    God Bless U

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  8. मैं भी कितना भुलक्कड़ हो गया हूँ। नहीं जानता, काम का बोझ है या उम्र का दबाव!
    --
    पूर्व के कमेंट में सुधार!
    आपकी इस पोस्ट का लिंक आज रविवार (7-7-2013) को चर्चा मंच पर है।
    सूचनार्थ...!
    --

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  9. बेहतरीन ग़ज़लें .....शुक्रिया अशोक जी

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  10. हमरा राहत को बधाई इन लाजवाब गज़लों के लिए ...
    हर गज़ल दिल को छू जाती है ... आपक अभी बहुत बहुत आभार इन्हें पढवाने का ...

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  11. सभी ग़ज़ल बहुत ख़ूबसूरत और दिल को छू गयीं...आभार पढ़वाने के लिए...

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  12. वाह बहुत सुंदर गजलों को साझा किया है
    भाई जी
    सादर

    आग्रह है--
    केक्ट्स में तभी तो खिलेंगे--------

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