Showing posts with label डा. राहत इन्दोरी. Show all posts
Showing posts with label डा. राहत इन्दोरी. Show all posts

Sunday, 7 April 2013

राहत इन्दौरी की गज़लें

राहत इन्दौरी

उसकी  कत्थई  आँखों  में हैं जंतर-मंतर सब
चाक़ू--वाक़ू,    छुरियाँ--वुरियाँख़ंजर--वंजर सब

जिस दिन  से  तुम  रूठीं मुझ से रूठे-रूठे हैं
चादर--वादर, तकिया-वकिया,बिस्तर-विस्तर सब

मुझसे बिछड़ कर वह भी कहाँ अब पहले जैसी है
फीके  पड़  गए  कपड़े--वपड़े,  ज़ेवर--वेवर सब

आखिर  मै  किस  दिन  डूबूँगा फ़िक्रें करते है
कश्ती-वश्ती,   दरिया-वरिया,  लंगर-वंगर  सब

डा. राहत इन्दोरी


गुलाब ख़्वाब दवा ज़हर जाम क्या-क्या है
मैं आ गया हूँ बता इन्तज़ाम क्या-क्या है

फक़ीर शाख़ कलन्दर इमाम क्या-क्या है
तुझे पता नहीं तेरा गुलाम क्या क्या है

अमीर-ए-शहर के कुछ कारोबार याद आए
मैँ रात सोच रहा था हराम क्या-क्या है
डा. राहत इन्दोरी


ये ज़िन्दगी सवाल थी जवाब माँगने लगे
फरिश्ते आ के ख़्वाब मेँ हिसाब माँगने लगे

इधर किया करम किसी पे और इधर जता दिया
नमाज़ पढ़के आए और शराब माँगने लगे

सुख़नवरों ने ख़ुद बना दिया सुख़न को एक मज़ाक
ज़रा-सी दाद क्या मिली ख़िताब माँगने लगे

दिखाई जाने क्या दिया है जुगनुओं को ख़्वाब मेँ
खुली है जबसे आँख आफताब माँगने लगे

डा. राहत इन्दोरी