वज़ीर आग़ा
लुटा कर हमने पत्तों के ख़ज़ाने
हवाओं से सुने क़िस्से पुराने
खिलौने बर्फ़ के क्यूं बन गये हैं
तुम्हारी आंख में अश्कों के दाने
चलो अच्छा हुआ बादल तो बरसा
जलाया था बहुत उस बेवफ़ा ने
ये मेरी सोचती आँखे कि जिनमे
गुज़रते ही नहीं गुज़रे ज़माने
बिगड़ना एक पल में उसकी आदत
लगीं सदियां हमें जिसको मनाने
हवा के साथ निकलूंगा सफ़र को
जो दी मुहलत मुझे मेरे ख़ुदा ने
सरे-मिज़गा वो देखो जल उठे हैं
दिये जितने बुझाये थे हवा ने
- वज़ीर आग़ा
बारिश हुई तो धुल के सबुकसार हो गये
आंधी चली तो रेत की दीवार हो गये
रहवारे-शब के साथ चले तो पियादा-पा
वो लोग ख़ुद भी सूरते-रहवार हो गये
सोचा ये था कि हम भी बनाएंगे उसका नक़्श
देखा उसे तो नक़्श-ब-दीवार हो गये
क़दमों के सैले-तुन्द से अब रास्ता बनाओ
नक्शों के सब रिवाज तो बेकार हो गये
लाज़िम नहीं कि तुमसे ही पहुंचे हमें गज़न्द
ख़ुद हम भी अपने दर-पये-आज़ार हो गये
फूटी सहर तो छींटे उड़े दूर-दूर तक
चेहरे तमाम शहर के गुलनार हो गये
- वज़ीर आग़ा
सावन का महीना हो
हर बूंद नगीना हो
क़ूफ़ा हो ज़बां उसकी
दिल मेरा मदीना हो
आवाज़ समंदर हो
और लफ़्ज़ सफ़ीना हो
मौजों के थपेड़े हों
पत्थर मिरा सीना हो
ख़्वाबों में फ़क़त आना
क्यूं उसका करीना हो
आते हो नज़र सब को
कहते हो, दफ़ीना हो
- वज़ीर आग़ा
वज़ीर आग़ा
- वज़ीर आग़ा
बारिश हुई तो धुल के सबुकसार हो गये
आंधी चली तो रेत की दीवार हो गये
रहवारे-शब के साथ चले तो पियादा-पा
वो लोग ख़ुद भी सूरते-रहवार हो गये
सोचा ये था कि हम भी बनाएंगे उसका नक़्श
देखा उसे तो नक़्श-ब-दीवार हो गये
क़दमों के सैले-तुन्द से अब रास्ता बनाओ
नक्शों के सब रिवाज तो बेकार हो गये
लाज़िम नहीं कि तुमसे ही पहुंचे हमें गज़न्द
ख़ुद हम भी अपने दर-पये-आज़ार हो गये
फूटी सहर तो छींटे उड़े दूर-दूर तक
चेहरे तमाम शहर के गुलनार हो गये
- वज़ीर आग़ा
सावन का महीना हो
हर बूंद नगीना हो
क़ूफ़ा हो ज़बां उसकी
दिल मेरा मदीना हो
आवाज़ समंदर हो
और लफ़्ज़ सफ़ीना हो
मौजों के थपेड़े हों
पत्थर मिरा सीना हो
ख़्वाबों में फ़क़त आना
क्यूं उसका करीना हो
आते हो नज़र सब को
कहते हो, दफ़ीना हो
- वज़ीर आग़ा