फरहत शहज़ाद की ग़ज़लें
आँखों आँखों एक ही चहेरा
धड़कन धड़कन एक ही नाम
- फ़रहात शहज़ाद
धड्कन धड़कन ज़ख़्मी है
फिर भी हसता रहेता हूँ
जबसे तुमको देखा है
ख़ाब ही देखा करता हूँ
तुम पर हर्फ़ न आ जाये
दीवारों से डरता हूँ
मुझ पर तो खुल जा 'शहज़ाद'
मैं तो तेरा अपना हूँ
साथ जमाना है लेकिन
तनहा तनहा रहता हूँ
तनहा तनहा रहता हूँ
धड्कन धड़कन ज़ख़्मी है
फिर भी हसता रहेता हूँ
जबसे तुमको देखा है
ख़ाब ही देखा करता हूँ
तुम पर हर्फ़ न आ जाये
दीवारों से डरता हूँ
मुझ पर तो खुल जा 'शहज़ाद'
मैं तो तेरा अपना हूँ
एक तो चेहरा ऐसा हो
शाम ढले एक दरवाज़ा
राह मेरी भी तकता हो
मेरा दुःख वो समजेगा
मेरी तरह जो तनहा हो
एक सुहाना मुस्तकबिल
ख़ाब सा जैसे देखा हो
अब 'शहज़ाद' वो दीपक है
जो तूफ़ान में जलता हो
फ़ैसला तुमको भूल जाने का
दिल कली का लरज़ लरज़ उठा
ज़िक्र था फिर बहार आने का
हौसला कम किसी में होता है
जीत कर ख़ुद ही हार जाने का
जिंदगी कट गई मनाते हुए
अब इरादा है रूठ जाने का
आप 'शहज़ाद' की न फ़िक्र करे
वो तो आदी है ज़ख्म खाने का
आँसुओं से भरी हुई आँखें
रोशनी जिस तरह पिघल जाये
दिल वो नादान शोख़ बच्चा
है
आग छूने पे जो मचल जाये
तुझको पाने की आस के फल
से
ज़िंदगी की रिदा न ढल जाये
बख़्त मौसम हवा का रुख़
जाना
कौन जाने के कब बदल जाये
खा कर ज़ख़्म दुआ दी हमने
बस यूँ उम्र बिता दी हमने
बस यूँ उम्र बिता दी हमने
सन्नाटे के शहर में तुझको
बे-आवाज़ सदा दी हमने
बे-आवाज़ सदा दी हमने
होश जिसे कहती है दुनिया
वो दीवार गिरा दी हमने
वो दीवार गिरा दी हमने
याद को तेरी टूट के चाहा
दिल को ख़ूब सज़ा दी हमने
दिल को ख़ूब सज़ा दी हमने
आ 'शह्ज़ाद' तुझे समझायें
क्यूँ कर उम्र गँवा दी हमने
क्यूँ कर उम्र गँवा दी हमने
लुत्फ़ जो उसके इंतजार में है
वो कहाँ मौसम-ए-बहार में है
हुस्न जितना है गाहे गाहे में
कब मुलाकात-ए-बार-बार में है
जान-ओ-दील से में हारता ही रहू
गर तेरी जीत मेरी हार में है
जिंदगी भर की चाहतों का सिला
दील में पैबस्त नोक-ए-खार में है
क्या हुआ गर ख़ुशी नही बस में
मरना तो इख़्तियार में है
वो कहाँ मौसम-ए-बहार में है
हुस्न जितना है गाहे गाहे में
कब मुलाकात-ए-बार-बार में है
जान-ओ-दील से में हारता ही रहू
गर तेरी जीत मेरी हार में है
जिंदगी भर की चाहतों का सिला
दील में पैबस्त नोक-ए-खार में है
क्या हुआ गर ख़ुशी नही बस में
मरना तो इख़्तियार में है
हम घर की दहलीज़ पे आ कर बैठे है
लिखने को उनवान कहाँ से लाये अब
काग़ज़ से एक नाम मिटा कर बैठे है
हो पाए तो हँस कर दो पल बात करो
हम परदेसी दूर से आ कर बैठे है
उठेंगे जब दिल तेरा भर जायेगा
ख़ुद को तेरा खेल बना कर बैठे है
जब चाहो गुल शम्मा कर देना 'शहज़ाद'
हम अंदर का दीप जला कर बैठे है
लिखने को उनवान कहाँ से लाये अब
काग़ज़ से एक नाम मिटा कर बैठे है
हो पाए तो हँस कर दो पल बात करो
हम परदेसी दूर से आ कर बैठे है
उठेंगे जब दिल तेरा भर जायेगा
ख़ुद को तेरा खेल बना कर बैठे है
जब चाहो गुल शम्मा कर देना 'शहज़ाद'
हम अंदर का दीप जला कर बैठे है
मर मर कर जीना छोड़ दिया
लो हमने पिना छोड़ दिया
लो हमने पिना छोड़ दिया
तेरा मिलना बहुत अच्छा लगे है
मुझे तु मेरे दुःख जैसा लगे है
चमन सारा कहे है फूल जिसको
मेरे आँखों को तुज चेहरा लगे है
रगों में तेरी ख्वाहिश बह रही है
ज़माने को लहू दिल का लगे है
हर इक मजबूर सीने में मुझे तो
धड़कन वाला दिल अपना लगे है
सफर कैसा चुना 'शहज़ाद' तूने
हर एक मंजिल यहाँ रस्ता लगे है
मुझे तु मेरे दुःख जैसा लगे है
चमन सारा कहे है फूल जिसको
मेरे आँखों को तुज चेहरा लगे है
रगों में तेरी ख्वाहिश बह रही है
ज़माने को लहू दिल का लगे है
हर इक मजबूर सीने में मुझे तो
धड़कन वाला दिल अपना लगे है
सफर कैसा चुना 'शहज़ाद' तूने
हर एक मंजिल यहाँ रस्ता लगे है
* * *
ज़िंदगी को उदास कर भी
गया
वो के मौसम था इक गुज़र भी गया
वो के मौसम था इक गुज़र भी गया
सारे हमदर्द बिछड़े जाते
हैं
दिल को रोते ही थे जिगर भी गया
दिल को रोते ही थे जिगर भी गया
ख़ैर मंज़िल तो हमको क्या
मिलती
शौक़-ए-मंज़िल में हमसफ़र भी गया
शौक़-ए-मंज़िल में हमसफ़र भी गया
मौत से हार मान ली आख़िर
चेहरा-ए-ज़िंदगी उतर भी गया
चेहरा-ए-ज़िंदगी उतर भी गया
क्या टूटा है अन्दर अन्दर, क्यू चेहरा कुम्हलाया है
तनहा तनहा रोने वालों, कौन तुम्हें याद आया
चुपके चुपके सुलग रहे थे, याद में उनकी दीवाने
इक तारे ने टूट के यारों, क्या उनको समजाया है ?
रंग बिरंगी इस महफ़िल में, तुम क्यूं इतने चुप चुप हो
भूल भी जाओ पागल लोगों, क्या खोया क्या पाया है
शेर कहाँ है खून है दिल का, जो लफ्जों में बिखरा है
दिल के ज़ख्म दिखा कर हमने, महफ़िल को गरमाया है
अब 'शेह्ज़ाद' ये जूठ न बोलो, वो इतने बेदर्द नहीं
अपनी चाहत को अभी परखो, गर इलज़ाम लगाया है
तनहा तनहा रोने वालों, कौन तुम्हें याद आया
चुपके चुपके सुलग रहे थे, याद में उनकी दीवाने
इक तारे ने टूट के यारों, क्या उनको समजाया है ?
रंग बिरंगी इस महफ़िल में, तुम क्यूं इतने चुप चुप हो
भूल भी जाओ पागल लोगों, क्या खोया क्या पाया है
शेर कहाँ है खून है दिल का, जो लफ्जों में बिखरा है
दिल के ज़ख्म दिखा कर हमने, महफ़िल को गरमाया है
अब 'शेह्ज़ाद' ये जूठ न बोलो, वो इतने बेदर्द नहीं
अपनी चाहत को अभी परखो, गर इलज़ाम लगाया है
* * *
सबके दिल में रहता हूँ, पर दिल का आँगन खाली है
खुशिया बाँट रहा हु जग में अपना दामन खाली है
गूल रुत आयी कलियाँ चटकी पत्ती पती मुस्काई
पर इक भंवरा ना होने से गुलशन गुलशन खाली है
दर दर की ठुकराई हुयी अई महबूबे तनहाई
आ मिल जुल कर रह ले, इसमें दिल का नशेमन खाली है
फ़रहात शहज़ाद
आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 01/05/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
ReplyDeleteTHANK YOU
Deleteबहुत बढ़िया,साझा करने के लिए आभार !!
ReplyDeleteRecent post: तुम्हारा चेहरा ,
thank you
Deleteबहुत खूबसूरती से रची रचना
ReplyDeleteउम्दा अभिव्यक्ति
aapko psan aaya.....muje khushi hui
Deletefarhat sahab ka jvab nhi waaaaaaaaaaah
ReplyDeletemahendi hsan or gulam ali dono ki aavaz soonai de rhi hai
वाह ......बेहतरीन ग़ज़लें
ReplyDeleteशुख्रिया
Deleteछोटे काफिया की बेहतरीन गज़लें !
ReplyDeleteशुख्रिया
Deleteशुख्रिया
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 21 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteलाजवाब संग्रह
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